Tuesday, October 16, 2007

कोई तो बात चले, कोई तो बात चले.....

कोई तो बात चले, कोई तो बात चले;
टिमटिमाते दीप तले, कभी तो ये रात ढले

माना कि हम वो ना रहे, करते थे जो हँस हँस के बातें,
वीरान होती जिन्दगी मे, कभी तो वो फूल खिले

हम खो चुके हैं इतना कुछ, अपना भी पराया लगता है,
ख़ुद
को सँजोए रखने को ही, क्या दो कदम साथ चले?

जिसे देख हँसती थी जिन्दगी, उनसे अब नज़र मिलती नही,
एक पल मुस्कुराने को ही, कोई तो इत्तेफाक की आड़ मिले

राहें बदल गई हैं इतनी कि, हमराही भी थे कभी हम?
पाने को उन राहों पर, कभी तो साथ साथ चलें

जिन पर हक था कभी, उनसे ही इज़ाज़त लेनी हैं,
एक मुलाकात को ही, फिर से मिले, फ़िर से मिले

मैं-मैं नही, तुम-तुम नही, हम एक थे हम एक हैं,
खामोशी की आग मे, बस हम जले बस हम जले

थाम लो हाथ फ़िर से, एक बात की ही बात है,
हिचकिचाहट कैसी है, कोई तो बात चले, कोई तो बात चले

~!दीपक
२०-०९-२००७