Tuesday, January 22, 2008

कोई समझा दे उस पगली को...

कोई समझा दे उस पगली को,
अलग थलग जो चलती है,
कि बिन दीपक - ज्योति भी,
दावानल सी जलती है....

बहारों से सजे तरु मंडल,
पंछी कलरव से गूंजते हैं,
कि उखड जाते एक पल मे,
नींव जो तल से हिलती है...

असीम सिंधु राशि से,
साहिल कहीं तो मिलते हैं,
कि उछल कूद करती सरिता,
बिन तट के ना बहती है...

यूं ही किसी ऊंचाई को,
आयाम नही मिलते हैं,
कि बिन डोर कभी पतंग,
आसमां मे ना उड़ती है ...

जो कोशिश करो जाने की,
जिंदगी - मौत बनती है,
कि इस चराचर जगत मे,
रूह जिस्म मे रहती है....

~!दीपक
२२-०१-२००८

Monday, January 21, 2008

प्यार रिश्ता नही जो निभाऊ...

प्यार रिश्ता नही जो निभाऊ,
यह जिंदगी है जीने के लिए...
भूलती हो कैसे जो याद आऊ,
साथ हूँ सदा तुझे हँसाने के लिए

मेरा रास्ता क्यों देखती हो,
ना मिलूंगा इन धूमिल राहों मे...
दिल मे झाँक जो गुहार लगाओ,
मिल जाऊ गले लगाने के लिए

तेरे आँसू नही हैं ये,
क़यामत के दरबान हैं...
एक् बार भी ना मरूँगा,
तुझे रुलाने के लिए

मैं सांस नही लेता,
तेरी खुशबू जिला देती है...
काफी है दामन छूट जाना,
मुझे तड्पाने के लिए

इंतज़ार न कर रात-दिन,
तुझ बिन न रह पाउँगा...
ना कह जुदा होता हूँ मैं,
तुम्हे आजमाने के लिए

~!दीपक
२१-०१-२००८