Sunday, December 20, 2009

किसी ने मुझे लूटा सरेआम..

किसी ने मुझे लूटा सरेआम..
खुदा सारी खुदाई दे देंगे..
ना जाने क्या है मेरा अंजाम
मेरे दुश्मन गवाही दे देंगे...

बेरहमी से कत्ल हुआ हूँ मै.
उसके दीदार साँसे दे देंगे
दिल की धड़कने सुनाई है
पत्थर अपनी आवाज़े दे देंगे

दोस्तों में चर्चे मजाकिया है
दीवाने दीवानगी दे देंगे..
सब कुछ तो ले लिया उसने..
फिर भी, जो बना दे देंगे

वक़्त भी तेरे इंतज़ार में है
आ जाओ, इसे रिहाई दे देंगे
एक बार जो थामो अगर
मौत को जुदाई दे देंगे...

~!दीपक
२०-१२-२००९

दिल से देखना अभी अभी सीखा है

मैंने प्यार में जीना अभी अभी सीखा है
दरअसल मैंने जीना अभी अभी सीखा है

जिंदगी तो ऐसी होती है, ख़ुशी ऐसी होती है
होना दुनिया से बेगाना अभी अभी सीखा है

मुस्कुराता हूँ, दोस्तों से छुपाता रहता हूँ
चोरी चुपके कतराना अभी अभी सीखा है

तन्हाई अच्छी लगती है, ख्यालो में रहता हूँ
थोडा रहना मदहोश अभी अभी सीखा है

ना छेड़ो मुझे, सपने देख रहा हूँ
दिल से देखना अभी अभी सीखा है

!~दीपक
२०-१२-२००९

गर ये प्यार है,

गर ये प्यार है,
सचमुच खूबसूरत है
कल्पनाओं को मेरी,
पर मिल गए...

प्रवाह बह निकला है
बंदिशें नहीं लगती..
बीच बाँध में जैसे,
दर मिल गए...

कहीं जगह तो मिली,
कहीं तो दिल जुडा..
शब्दों को मेरे,
घर मिल गए...

कोई हार जीत नहीं
कोई बैर भाव नहीं
स्वर्गों के सुनहरे
दर मिल गए..

यही तो निर्वाण है
शायद तपस्या भी..
कर्म करने के लिए
कर मिल गए...

तुम मिल गए..
मै मिल गया..
अब और क्या रहा
हम मिल गए...

~!दीपक
२०-१२-२००९

जब कभी भी मै शर्माता हूँ...

मुझे प्यार कभी कभी ही होता है
अक्सर खुद को जब लुटा पाता हूँ
सारी इन्द्रियाँ शिथिल हो जाती है
और शायद ही शक्ति जुटा पाता हूँ

कोई मुझे स्तब्ध कर जाए..
तन मन परिवर्तित कर जाए
जब खुद को ठगा हुआ पाता हूँ..
मुस्कुराता,  पीछे हट जाता हूँ

सोचना- बोलना बंद हो जाता है
खुद में खुद को तलाशता पाता हूँ 
इंतज़ार में रहना कब..क्या करू
हर लम्हा खासमखास पाता हूँ..

वो दुनिया अलग है, नि:शब्द है
बोलता तो हूँ, पर हकलाता हूँ
समझ जाता हूँ कि प्यार हुआ,
जब कभी भी मै शर्माता हूँ...

~!दीपक
२०-१२-२००९

सारे पशेमन मै जलाने आ रहा हूँ...

बहता ही जा रहा हूँ, उड़ता ही जा रहा हूँ..
मुझे नहीं पता, मै कहाँ जा रहा हूँ..

रोके न रुकता हूँ, कैसे जा रहा हूँ...
शायद उसी से मिलने जा रहा हूँ

वो भी मेरे ख्याल में डूबे हुए है..
ख्याल उनके बेतरतीब लिखते जा रहा हूँ

मुझे ही नहीं पता, मै क्या कह रहा,
कोई क्या समझे, क्या कहता जा रहा हूँ

आभास नहीं था अब तक जी रहा था मै
अब जी रहा हूँ, जिंदगी मै आ रहा हूँ..

तुम निकल पडो, पर्दों में ना रहो...
सारे पशेमन मै जलाने आ रहा हूँ...

~!दीपक
२०-१२-२००९

जब हमको प्यार हो गया...

ज़माने थे महफिले इंतज़ार करती थी
ये भी दौर है, अब हम इंतज़ार करते है
कभी शमा से खेला करते थे दीपक
अब दिल-ओ-जान से प्यार करते है

हर एक चेहरा देखते है उजाले में...
अंधेरों में मिलने से इंकार करते है
एक-दो जाम जो कभी टकरा लेते थे..
पैमानों से वापस बोतल में भरते है

शायद उसने शराफत सिखा दी...
दुनियादारी से खिलाफत करते है
जब हमको प्यार हो गया...
क्यों वो शिकायत करते है...

~!दीपक
२०-१२-२००९

तुम नहीं मिलते, तुम भी बदल गयी...

तुम क्या मिले, मेरी दुनिया बदल गयी..
दोस्त बदल गए, किस्मत बदल गयी..

हर कोई दुश्मन नज़र आता है अब तो..
तुम नहीं मिलते, तुम भी बदल गयी...

तुम्हे ही देखता हूँ, तुम्हे ही खोजता हूँ
नज़ारे वही है, मेरी नज़र बदल गयी...

यूँ तो कभी कोई शिकवा न रहा मुझे
मेरी ही यही बात, ये भी बदल गयी...

कोई नहीं था मेरा दुनिया में अब तक
तुम क्या मिले, तुममे दुनिया बदल गयी...

~!दीपक
२०-१२-२००९

किसी से मिलने का इंतज़ार हमें भी है अब

किसी से मिलने का इंतज़ार हमें भी है अब
शायद किसी से प्यार हमें भी है अब...

ना देखते तो शायद यूँ ना लुटते..
उस क़यामत से इकरार हमें भी है अब

फिर मिला तो पूछूंगा भूले तो ना थे हमे
उनसे दीवानगी का इसरार हमें भी है अब

लबो को सी दिया था जिसके दीदार ने
करना उनसे इज़हार हमें भी है अब

कुछ खो जाने का डर लगा रहता है
पाना दिल का करार हमें भी है अब..

~!दीपक
२०-१२-२००९

उससे बिछड़ जाने का क्यूँ गिला है मुझे..

उससे बिछड़ जाने का क्यूँ गिला है मुझे..
मैंने तो उस से बात भी की ना थी...
एक नज़र देखा था मदहोशी में...
एक जाम में नफासत खोई ना थी...

बस देखता ही रहा उसके नूर को
आखों में इतनी ताजगी पहले ना थी
फिर जुबां पर ही ताला कैसे लगा..
शायद, उससे गुफ्तगू हो तो रही थी...

छोड़ आया जब उस गली को..
दिल में धड़कने, रही ना थी...
ज़माने ने मुझको उलझा लिया
कदमो में हलचल रही ना थी

सोचता हूँ कही तो मिल जाऊ फिर से
अचानक ही जैसे, उम्मीद ना थी
कुछ तो बात होगी ...
जैसे, कभी कोई बात ना थी...


~!दीपक
२०-१२-२००९

Friday, September 4, 2009

आँख लिए घूमता, अँधा नज़र आया

तन्हाइयों का देखो, कैसा मंजर आया,
मै तन्हा नज़र आया, वो तन्हा नज़र आया|

वो रूठे तो कुछ, अलग पहर आया,
हम भी जो रूठे, जुदाई का भंवर आया|

हर एक से छुपाया, जो शख्स नज़र आया,
अंधेरों को दीपक भी, सहर नज़र आया|

प्यासों को याद, गाँव का निर्झर आया,
प्यासों के साथ, पापी शहर आया|

आँखों में आँसू नहीं, पत्थर नज़र आया.
आँख लिए घूमता, अँधा नज़र आया|

~!दीपक
४-सितम्बर-०९

Sunday, August 2, 2009

हम दोनों फिर उन दिनों में डूबे है..

आज बारिश भी है..
और गरमागरम चाय भी
सौंधी खुशबू से सजे समोसे भी है...

नहीं है तो बस..वो जीवंत ठहाके,
वो हँसी विनोद, दोस्ती के धमाके

कभी यूँ सीढियॉ पर,
बंद दुकानों की देहलानो पर..
काफी हाउस की मेजो पर..
सड़क किनारे, साइकिलों पर

उन कुछ एक पलों में
समय थाम लेते थे..
और पलों में उड़ते हुए
कायनात नाप लेते थे

सपनो में ना जाने क्या-क्या पाया था
बड़ी बड़ी फ़िक्र भी राख बना उड़ाया था

ना पता था एक दिन...
हम भी यूँ उड़ जायेंगे
कभी पंछियों से कलरव करते
एकाकी हंस बन जायेंगे

वाकई लम्बी दूरी तय कर ली है
उन दिनों की यादें छू नहीं पाती
समय अब हमको नाप रहा है..
राख वापस उड़ उड़ है डराती

पर मै डरता नहीं,
दोस्ती में डर नहीं होता
दूरी नहीं होती, मंजर नहीं होता.

भटकता हुआ वापस उन्ही राहों पर जाना है
कुछ ना बदलेगा, वो विश्वास पाना है..

खैर, चाय कुछ कड़वी सी बनी है...
समोसों में नमक भी कम कम सा है..
घर के अन्दर बारिश का मजा कुछ नहीं...

मै निकल आया हूँ, भीग रहा हूँ,
बारिश की बूंदों में वो ख़ुशी ढूंढ रहा हूँ..
कुछ अपनापन आज भी इन बूंदों में है..
समय फिर से रुक कर मुझे देखता है..
मुस्कुराता है, और बैठ जाता है...

हम दोनों फिर उन दिनों में डूबे है..
और उन दिनों की यादें आज
चाय की चुस्कियों को मीठा कर रही है...

~!दीपक
२-अगस्त-०९

Thursday, July 23, 2009

जिनका अता-पता भी ना था कभी कहीं

जिनका अता-पता भी ना था कभी कहीं..
ढूंढते आ पहुचे है अनायास वो गली-गली...

हम तो मशरूफ रहे, मुफलिसी में अपनी
बातें क्या सुनाई देती, हमको जली-जली

आज पैमाना फिर टूटा, उफ़, ये मदहोशी
समझा कुछ नहीं, उसने कही जो खरी-खरी

क्यों लोगो को उलझन है, ये पता नहीं
हमसे कैसे जायेगी, इज्ज़त हो भली-भली

यूँ तो दिखती है, राहें हर तरफ खुली
कैसे बंद हो जाती है, उनकी गली-गली..

हम तो पतझड़ के रंगों को समझे नहीं
शाखों को फूल-पत्तियां मुबारक हो हरी-भरी

अब जो बिसरूंगा, दुनिया में अपनी
नेकदिली अपनी, सम्हाले रखो धुली-धुली

~!दीपक
२३-जुलाई-०९

Tuesday, June 2, 2009

सवाल है जबाब है

सवाल है जबाब है
चेहरे पे नकाब है
छुप रहा है आड़ में..
किसका ये शबाब है..

अजनबी था, ना रहा..
फकीर है, नबाब है..
ढूंढ लाओ उसे,
दिल पे ये दबाब है..

रिस रिस कर छुप रहा..
किस का ये आब है..
मेरे घर की मिट्टी,
आज सोने के भाव है..

परछाई तो दिखे,
पर धूप है ना छाव है..
रास्ता ना दिखा, पर
लगता है चड़ाव है..

नेता अभिनेता का
कैसा ये चुनाव है
हार जीत के बिना
कैसा ये दांव है..

रहते तो है हम यहाँ..
फिर किसका ये गाँव है..
आज हमारी तलैया में
कही और की नाव है..

दर्द हमारे दिल में है.
उनके दिल में घाव है..
कोयल की शकल में,
कौए की कांव कांव है..

~!दीपक
२-जून-०९

Tuesday, April 28, 2009

चुनाव २००९ - मेरा नज़रिया

आजकल का जो राजनीतिक माहौल देश में चल रहा है, जो परिदृश्य दिख रहा है, उस पर बहुत हसी भी आती है, रंज भी होता है, दुःख भी होता है, और फिर ये अनुभूति होती है कि ठीक है ५ सालों में एक बार तो ऐसा कुछ नाटक होना ही चाहिए
आजकल लोग बहुत कुछ लिख रहे, हमसे भी कहा गया कि भाई आप इतना लिखते है, समझ रखते है तो फिर अपनी राय आगे क्यों नहीं रखते मै हर बार मुस्कुराकर ही रह गया कान पकड बैठा रहा, कि फोकट में गालिया पड़ जायेगी नाम ख़राब कौन करे
मै ठहरा छोटा सा, कभी भी ख्यात ना होने की इच्छा रखने वाला कवि, जो सोचता है समझता है, वस्तुस्थिति के हिसाब से नाप तौल कर अपने ही अंदाज़ में कुछ लिख देता है हिंदी प्रेमी है, सो शुद्ध हिंदी ही लिखता है, ऊपर से ठहरा अंतर्मुखी, आलोचनाओ से डरने वाला, इतना डरने वाला कि कभी प्रशंसा कि उम्मीद भी नहीं करता अब आज के दौर की अंग्रेजी पसंद नौजवानों को शायद ही मेरा लेख पसंद आये पसंद क्या, वो शायद ही पढ़े, और पढ़े तो उनको हिंदी समझ आने से रही पर शुद्ध अंग्रेजी भी किसी को ही आती है, शुद्ध लिखी तो वो भी दिमाग से ऊपर जायेगी तो बस हिंग्लिश (हिंदी और अंग्रेजी की खिचडी) ही बचती है...GEN X...वो भी गयी...GEN Y शायद सब कुछ हिंग्लिश जैसा ही करना चाहती है..आखिर अब यही तो बचा है...पूरी आज़ादी बिना जिम्मेदारी के, बिना सोच के...
खैर मै काफी पका चुका हूँ, और लेक्चर देने का मूड मेरा भी नहीं है ऊपर से लिखना भी मुझे आज की राजनीति पर ही है तो सबसे पहले तो मै यही अर्ज करूंगा, अपील नहीं, क्योकि थोडा इमोशनल टच बहुत जरूरी है अपील वैसे भी हर कोई कर ही रहा है
वोट की अहमियत आज हर किसी को तो समझती ही है, कुछ नहीं तो एक रात की दारु का इंतजाम, कड़ी धूप में लाइन लगाकर कुछ टाइम पास (हमारी सरकार आज भी इस से बेहतर इंतजाम नहीं कर पायी), ऑफिस से एक दिन की या कुछ घंटो की छुट्टी, पढाई का सत्यानाश, exams के postponement, फ्री का तमाशा, गाना बजाना, मिर्च मसाला, गॉसिप...जितना सोचो, उतना मिलेगा
पर इन सबके लिए जिम्मेदार हम जनता ही है, सरकारे, नेता नहीं अगर हम उनको स्वार्थी कहते है, और कहते है कि कुछ नहीं करने वाले, तो हम भी कम स्वार्थी कब रहे? हमेशा छोटे छोटे फायदे ही देखे है और वोट दिया या नहीं दिया है चुनावों को, नेतागिरी को धंधा बनाने में हमारी भूमिका, रोल उतना ही रहा है, जितना की नेताओ का उन्होंने बड़े बड़े फायदे उठाये, हमने छोटे छोटे पर राजनीति को धंधा बनाने में पूरा पूरा सहयोग हमी ने दिया है वो भ्रष्टाचार करते है, तो हम कालाबाजारी से खुश रहते है
फिर कभी भी हमने नेताओ से जिम्मेदारी की बात तो की नहीं बिजली नहीं, सड़क नहीं, पानी नहीं, तो नहीं सही, काम चल रहा है ना, बहुत है हाँ, हिन्दू-मुसलमान की बात हो, आपस में लड़ने की बात हो, मिर्च मसाले की बात हो तो चस्का लेकर सुन ने का
इसका सबसे बड़ा उदाहरण तो हमारे देश का मीडिया ही है, आखिर धंधा है जो लोग देखना सुनना चाहते है, वोही दिखायेगा ना तो वही सब दिखाता भी है, बातें भी वही सब करता है, बेशर्मी की हद नहीं बची, टीवी देखो, नेट पर पढो...कामन सेंस भी नही बचा जो चीजे नहीं दिखाना चाहिए वो भी दिखा डालते है पर वो सब बातें नहीं करते, जो दिमाग पर जोर डाले क्यों...क्योकि कोई सुनना कहाँ चाहता है वो सब, ज्ञान नहीं मनोरंजन चाहिए हर किसी को हर जगह, हर पल, चाहे फिर बातों में दम हो या नहीं, मुद्दा हो या नहीं
चुनावों में भी देख ले तो दिखता है कि फ़िल्मी सितारे, क्रिकेटर आज सबसे अच्छे नेता बन सकते है भीड़ खिची चली आती है, लोग करिश्मों की उम्मीद उनसे रखते है कि असल जिंदगी में भी फिल्मो जैसा ही काम करेंगे और सब परेशानियां छू-मंतर कभी किसी पड़े लिखे नौजवान को या उद्योगपति को, समाजसेवी को, सरकारी ओहदों पर काम कर चुके अफसरों को(काम कर चुके लिखा है, सिर्फ सरकारी अफसर नहीं) उतनी जल्दी टिकट नहीं मिले जितने इस सितारों को मिल गए उन लोगो को नहीं मिले, जो सचमुच बदलाव ला सकते है...तो कुल मिलाकर ये चुनाव मजे लेने के लिए है, मजे लो
फिर चाहे जूते उछाल उछाल कर लो, मनमोहन सिंह को कमजोर प्रधान मंत्री बता कर लो, पप्पी झप्पी लेकर लो
मै मनमोहन सिंह की बात करता हूँ पहले बन्दा शरीफ है, काम करने वाला है, राजनीति करने वाला नहीं शर्मीला है, तो कभी लाइमलाईट में आता भी नहीं आज कमजोर प्रधानमंत्री बन कर रह गया पर मुझे नहीं लगता MMS कमजोर रहे, मुझे लगता है मजबूर प्रधानमंत्री ज्यादा रहे पर गठबंधन सरकारों का यही चलन है, काम कम समझौते ज्यादा होते है ऊपर से ऐसी पार्टी जहाँ सिर्फ एक परिवार विशेष की योग्यता ही प्रधानमंत्री के लायक है बाकी तो सब ऐरे गैरे, नत्थूखैरे है अब मालकिन ने काम भी दिया तो उस पद पर काम करने के लिए बहुत लोग ऐसे भी थे, जिन्होंने बस परिवार की सेवा करके ही वो हक हासिल कर लिया था MMS को अचानक ये सब मिल जाना, किसी को पचा नहीं होगा, और परेशानी हर किसी ने पैदा की है, चाहे वो पार्टी के अन्दर से हो, या बाहर से विपक्ष का रोल तो बस विरोध करने का ही रहता है, फिर चाहे काम प्रशंसा योग्य हो या नहीं वैसे भी काम करने वाले काम ही करते रह जाते है, दिखा नहीं पाते MMS के कुछ ऐसे लोगो ने भी मंत्री पद सम्हाला, जिसमे उन्होंने काम उतना नहीं किया जितनी वाहवाही लूटी किसी को तो सौभाग्य वश पूर्वरती मंत्री के कामो का ही श्रेय मिल गया MMS इस मामले में लकी नहीं रहे वो एक मजबूर प्रधानमंत्री रहे जिसकी मजबूती बस एक बार ही नज़र आई, वो भी जब परमाणु समझौता हुआ तब
अब बात करते है मोदी साब की बहुत ही संवेदनशील है इस आदमी के बारे में बात करना, पर मै इनका मुरीद हूँ तो बस इसलिए कि काम करते है विगत वर्षो में दंगो के मामलों में जितने सुर्खियों में मीडिया ने, नेताओ ने उनको जितना चर्चा में रखा, उनके काम के लिए बिलकुल भी नहीं पर ये काम करते है, दम ठोक कर करते है, और कम से कम गुजरात एक ऐसा राज्य है जहाँ लोग उनके पीछे है गुजरात आज अकेला ऐसा राज्य है, जहाँ विकास हो रहा है सुनाई नहीं, दिखाई दे रहा है पिछले एक दशक को देखे तो गुजरात में विनाशक भूकंप आया, बाढ आई, दंगे हुए, पर उसका असर तो मानो कुछ हुआ ही नहीं अगर ये सब नहीं होता तो गुजरात ना जाने कहाँ होता प्रशासन की दक्षता तो बस इसी से ही दिख जाती है, जिस प्रकार नैनो का सयंत्र गुजरात में १० दिन अन्दर आ गया महाराष्ट्र में टाटा का संयंत्र बहुत पहले से है, आन्ध्र, कर्नाटक बहुत तेजी से आगे आये पर गुजरात ने कब बाजी मारी पता भी नहीं चला बंगाल से विदाई की बातों के खत्म होने से पहले गुजरात में संयंत्र लगने की खबरों से समाचार पटे हुए थे रही बात साम्प्रदायिकता की, गुजरात में आज ऐसा कोई भेदभाव तो नहीं दिखता योग्यता पर आज राज्य का मुख्य पुलिस अधिकारी एक मुस्लिम है बेहतर हो अगर मै कहूं कि उसकी जात मुस्लिम है, ईमान हिन्दुस्तानी है साम्प्रदायिकता सिर्फ विरोधी नेताओ कि आवाजों में ही है, और गुजरात के बारे में ये बातें दूसरे राज्यों में ज्यादा होती है, बनिस्बत गुजरात में होने के
बाकी तो इस बार दूसरे ऐसे कोई मुद्दे है ही नहीं, जिन पर बात भी की जाये बस मजे लो, क्योकि चुनाव तो खत्म हो ही चुके सरकार तो मिली जुली ही बनेगी और पार्टियों से समझदारी की ऐसी कोई उम्मीद नहीं रखता कि वो भेदभाव मिटा कर "पार्टियों की नहीं, बल्कि उन लोगो को मिलाकर सरकार बनाए, जो सचमुच काम कर सके" फिर चाहे सरकार में प्रधानमंत्री MMS हो, उद्योगमंत्री मोदी साब हो
जिस सरकार में कुछ ऐसे कड़े फैसले लेने की हिम्मत हो जो देश का भविष्य जातिवाद, धर्मं, आरक्षण से ऊपर उठ कर तय कर सके मूलभूत सुविधाओ के साथ जो ऐसा वातावरण भी दे सके ताकि कल भारत की प्रतिस्पर्धा के लिए भी दूसरे देश आपस में प्रतिस्पर्धा करे आज जब चीन और दूसरे देश हमें टक्कर देने की सोच रहे है, कोई आतंक फैलाना चाहता है, हम आपस में लड़ बिलकुल नहीं सकते
इतना तो कम से कम मै चाहता ही हूँ कि अगले चुनावों में कुछ नए कड़े नियम जरूर लागू हो, जैसे कि नेता की उम्र, काम का तजुर्बा, इमेज, शिक्षा आदि आदि जो एक आम आदमी पर एक साधारण सी नौकरी पाने के लिए भी लागू होती है मतदान सुलभ हो और हर कोई मत दान कर से, फिर वो चाहे कही ही बैठा हो, काम कर रहा हो पार्टियों में सितारे नहीं, जमीनी कार्यकर्ता को टिकेट देने की चाह हो और मीडिया उन बातों को मुद्दा बनाये जो जरूरी है, ना कि सिर्फ मिर्च मसाला दिखाए मीडिया चुनावों के पहले कार्यक्रम चला कर मुद्दे उठा सकता है, मुद्दे बना सकता है लोगो को इतना बता सकता है कि वो वोट कहाँ और कैसे दे सकते है अगर कोई झूठ बोल रहा है, तो मीडिया क्यों पर्दाफाश नहीं करता जैसे कि कांग्रेस सीधा सीधा बोलकर वाजपेयी सरकार के उस निर्णय की निंदा कर वोट मांग रही है जब आतंकवादी को छोड़कर लोगो को छुडाया गया थाऐसे निर्णय सर्वसम्मति से स्थिति को ध्यान में रखकर लिए जाते है हर कोई शामिल होता है फिर चाहे वो अडवानी क्यों ना हो, कांग्रेस क्यों ना हो
और ऐसी स्थिति ना आये, इसके लिए आतंकवादी को जिंदा क्यों रखते है हम वो इतने सख्त है जिनको जान जाने का डर नहीं होता, वो अगर कुछ नहीं बताना चाहते तो नहीं ही बताएँगे कसाब को कैद में रखने का खर्च जितना होगा, उतने में कम से कम चार पांच शहर तो अब तक आबाद हो चुके होते नहीं बता रहा है, तो दे दो सेना को और मार डालो आतंकवादियों के लिए भारत स्वर्ग से कम नहीं, जितना आतंक फैलाना है, फैलाओ, मारे गए तो मर गए, पकडे गए तो जेल के सुख कुछ होना नहीं है, आज नहीं तो कल छूट जाने के चांस भी है पकडो मत, मार डालो...उनका कोई धर्मं नहीं है, ना ही किसी बात का डर है, ना ही वो इंसान है
आखिरी में, मेरी अर्ज तो यही है कि वोट तो दे ही दो, चाहे किसी की भी सरकार बने कोई फर्क आज पड़े या ना पड़े इतना डर ही काफी होगा कि कल नेता वोट मांगने सोच समझ कर आयेगे फर्क हमने पैदा करना है, नेताओ से काम कराना है, उन्हें जिम्मेदार बनाना है १० दिन खूब ख़ुशी मनाइए अपने मनपसंद प्रत्याशी के जीतने का, पर ग्यारहवे दिन से हिसाब लेना भी शुरू कीजिये कि काम क्या कर रहे हो, रिपोर्ट क्या है? नौकरों से हिसाब न लो तो बेईमान गैरजिम्मेदार हो जाते है वैसे ये चुनाव काफी निर्णयकारी और युगांतर हो यही कामना करता हूँ बहुत कुछ जागरूकता आई है, बहुत कुछ आनी बाकी है कम से कम नेता नहीं तो हम लोग तो अगले चुनावों की तैयारी कर ही सकते है

~!दीपक
२७-अप्रैल-०९

Tuesday, April 14, 2009

लाचारी

एक कविता, १७-सितम्बर-१९९५ की लिखी हुई...१४ साल पहले...आज भी सटीक है...कुछ भी नही बदला...

लाचारी यह जनता की नही,
लाचारी यह उसके मन की है॥
मैं तो यही कहूँगा भाई,
यह जनता बड़ी सनकी है॥

तानाशाहों को हराने का सामर्थ्य रखती,
फ़िर भी आगे कदम न बढाती है॥
आहें भरकर जीती - मरती,
सारे देश को रहती सड़ाती है॥

चिकनी-चुपड़ी बातों में फंसकर,
अपने पैर आप कुल्हाडी मारती है॥
सर्वशक्तिशाली होकर भी,
कुछ लोगो के हाथों हारती है॥

मैं तो ख़ुद जनता में हूँ,
मुझे जनता से बैर नही॥
जिसदिन ख़ुद को जान ले जनता,
उस दिन इन तानाशाहों की खैर नही॥

~!दीपक
१७-सितम्बर-१९९५

Wednesday, April 8, 2009

और कई सारी बातें,..बात नही होती...

हम उन गलियों से नही गुज़रते,
जहाँ दोस्ती की कोई बात नही होती॥
बन गए हमसफ़र तो क्या हुआ,
मुहब्बत ही आख़िर जज़्बात नही होती॥
गुफ्तगू करते है, और करते रहेंगे,
क्या दोस्तों की कोई शब्-ऐ-रात नही होती??
यूँ इल्जामों से हमे सताते क्यूँ हो,
दोस्तों की कोई जात नही होती॥
और कई बातें,..बात नही होती
...या, सिर्फ़ बात नही होती॥

~!दीपक
८-अप्रैल-२००९

Sunday, April 5, 2009

तुम चले गए आज, ऐसा लगा रूठकर..

तुम चले गए आज, ऐसा लगा रूठकर..
यूँ तो तकरार की बातें ना थी तिल भर...
हम तो यूँ ही मौजों में बहे जाते हैं...
कश्ती से तेरी जब रहती है नज़र..
फिर अकस्मात ऐसा क्या हुआ...
कही तूफां की तो ना आई खबर..
अब डूबते है, तेरी रुखाई देखकर..
दिल डूब जाए तो क्या हो तैरकर..
बहुत खलिश सी दिल में उठती है..
और अँधेरी लगती है लहर..
अब जो डूबे तो ना बचेंगे..
मरने की भी शायद ही हो खबर...

~!दीपक
०५-अप्रैल-२००९

खुदाई तेरी हस्ती...

यूँ तो महफिल में बातें तमाम हुई...
उनका यूँ चला जाना, गुफ्तगू-ए-आम हुई..
कटघरे में हम है, सवालों के बीच..
मजलिस ना हुई, कचहरी बदनाम हुई..
सज़ा मुक्करर होगी ना जाने ये कब..
सारी रात ये, जागती शाम हुई..
यूँ तो सपने नींद में ना आये..
जागी आँखों को, तस्वीरे हराम हुई..
अब तेरा फैसला जिन्दा ना रखेगा..
दोस्ती हमारी दीवानगी के नाम हुई..
ये इश्क बड़ा काफिर है दोस्तों,
खुदाई तेरी हस्ती, यूँ बदनाम हुई...

~!दीपक
०५-अप्रैल-२००९

शायरी 2009

वो चिलमन हटाते है इस कदर दीपक...
जैसे नूर का कोई अक्श, छुपा ही नहीं था..

दुनिया में हर कोई दिखाई देता है...
साया ही साथ चलता है, दिखाई दिए वगैर..

मुहब्बत  दीवानगी है, आवारगी ना कहो...
मदहोशी का मजा, होश में नहीं लेते... 

किस अदा से देखो वो रुख बदलते है,
नज़र नही हटती, नजारे बदल जाते है॥

हमारे सवाल पर उनका कोई सवाल नही आया,
इधर उधर ताकती उनकी नज़र, बयान कर गई सबकुछ॥


उनसे इज़हार की बातें कैसे बयाँ कर दूँ,
कुछ लम्हों के किए, लफ्ज़ कम पड़ जाते है॥

वो हमारी बरबादी पे हँसते है..
और उनकी इक मुस्कान के लिए,
हम बरबाद होते है खुशी-खुशी...

नया कानून है, नया ज़माना है, नया फ़साना है,
राखी बहनों से ही नहीं, भाइयों से भी बंधवाना है..

मेरे दुश्मन मेरी खैरियत की दुआ मांगेंगे
मेरे कुछ दोस्त, मेरी पीठ में छुरा मारेंगे...

हम तो मशरूफ रहे, मुफलिसी में अपनी
बातें क्या सुनाई देती, हमको जली-जली

वो चाँद बहता हुआ आता तो दिखा था...
आसमां के आगोश में ना जाने कब चला गया..

यूँ हिसाब की बात ना करो प्यार में...
इसे ना तौल पाया, खुदा किसी व्यापार में...
 
चाँद आजकल कुछ ज्यादा ही शरमा रहा है...
तुम निकल आओ ये अर्ज़ है, वो तन्हा घबरा रहा है...
 
तुमसे क्या गिला करे कि बेईमान बना दिया हमे...
जब ईमान ही न रहा, तो यकीन करता कौन है...
 
तन्हाई में हमारी आहे भी हिचकियाँ दे जाती है उसे...
सरे आम नाम लिया तो, कही साँसे ही न भुला बैठे..
 
अब हमारी बातें इतनी आम हो चली...
कहने से पहले ही, समझ लेते है लोग...

सवालों पर जवाब, अब हमको देने है...
उन्हें तो चुप रहने की अदा सिखा गया कोई...

अजब चीज़ है ये शराब भी..
उन्हें भुलाने पीते है, ये हिचकियाँ ले आती है..

हमे तो तुझमे कोई रंग ना दिखा ऐ खुदा..
ना जाने क्यू फिर, तुझे रक्तिमा से रंगते है..

नातों की हर डोर, तोड़ रहे है दोनों..
देख कर अनदेखा करना, सीख रहे है दोनों..

किसी की कद्र, एक हद तक करना दीपक,
प्यार की ग़लतफ़हमी, बहुत जल्दी होती है..

आँखों में आँसू नहीं, पत्थर नज़र आया.
आँख लिए घूमता, अँधा नज़र आया|

जिंदगी तुझसे सबकुछ साझा नहीं किया...
मौत से दोस्ती मेरी तुझे पसंद ना आती...

प्यार में लुट गए लूटने वाले
लूट ले गए इसमें लुटने वाले.
~!दीपक
शायरी २००९

Tuesday, March 10, 2009

बुरा ना मानो, होली है...

प्रियतमा, तोरी सखी मन भावे,
ध्यान करत सुध-बुध खो जावे..
मन बगिया में टेशू सी लाल,
आग लगाए जो लगाए गुलाल..
बूझ सके सो कौन सयानो,
तज सके सो कौन अयानो...
तुम दोई जैसें सूरज-चन्दा,
एक ह्रदय को दो-दो फंदा..
सो पकरो चाहे जितनी चोरी,
हमहूँ खेरें दोई संग होरी...

बुरा ना मानो, होली है....
~!Dpak
१०-मार्च-०९

Saturday, February 28, 2009

जिंदगी तुझसे आज़ादी, लाजिमी सी है...

तेरे शिकवों में कुछ, कमी सी है,
सूखी बर्फ चश्मों में, जमी सी है॥

किस मायने बताऊ, जो सच लगे,
हिम्मत की तुझमे, कमी सी है॥

देख ही पाती तू, तो देख ना लेती,
क्यूँ एक लम्हे में, थमी सी है॥

अरसे हुए घर में, शमा जले हुए,
शमा लिए आज भी, नमी सी है॥

तेरे अश्क लगते है, समंदर मुझे,
मुहब्बत फैली हुई, सरजमीं सी है॥

क़ैद हूँ आज भी, जुल्फों में तेरी,
जिंदगी तुझसे आज़ादी, लाजिमी सी है॥

~!दीपक
१-मार्च-२००९

Monday, February 23, 2009

शायरी २००८

वो मुझे झील में अपना प्रतिविम्ब दिखा रहे थे....
एक सूखी टहनी अकस्मात गिरकर, चेहरा दिखा गयी...
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हवा में ही चिरैयों के पर ना गिना करो...
आजकल दानापानी ठीक ठाक नहीं मिलता...

..उन लोगो के लिए जो लिफाफा देखकर ही ख़त पढ़ लेते है...
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क़यामत की रात में कायनात मिट गई॥
हम मिट गए, हमारी ख़ाक मिट गई...
तेरा नाम न मिटा...क़यामत की रात मिट गई...
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मोहब्बत सिर्फ़ परवाने की ही है ...
शमा तो कभी, बुझती नही है...
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जो कुछ भी ना कह पाया हो, उसको खामोशी नही कहते
एक बात छोड़, सब कह पाया हो, खामोशी उसको कहते है...
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तबियत से जला साहिबा, क्यूँ धुंआ करती है...
दो जून खिला के देख, ये आग..ठंडा करती है....

~!दीपक
शायरी २००८

Sunday, February 22, 2009

क्या सोचकर दोस्ती का हाथ आगे बढाते हो....

क्या सोचकर दोस्ती का हाथ आगे बढाते हो,
मुझे तो अपना नाम भी, बताना नही आता॥

कोई तो आ जाए जब तुम बात करते हो,
मुझे बात करने का बहाना नही आता॥

तुम शिकवे भी मुहब्बत से कर लेते हो,
मुझे तो प्यार भी जताना नही आता॥

कोना बता दे दिल का जो बदरंग देखते हो,
मुझे बेवजह पानी बहाना नही आता॥

जिस से दिल मिलते नही क्यूँ हाथ मिलाते हो,
मुझे बेवजह दोस्ती निभाना नही आता॥

क्या करू जो आंखों को अश्कवार करते हो,
मुझे दोस्तों पर नश्तर, चलाना नही आता॥

फ़िर क्या सोचकर दोस्ती का हाथ आगे बढाते हो,
मुझे झूठे हसीं ख्वाब दिखाना नही आता॥


~!दीपक
२१-फरवरी-२००९

अपनी बाहों में...उन्हें, आंसू बहाते देखा है...

हुस्न-ओ-गरूर से झिलमिलाते देखा है,
गलियों में उसे, शाम गुजारते देखा है॥

सावन में बावरों की मल्हार से,
बादलों में, चाँद शर्माते देखा है॥

ना कहो जाँ बाकी नही इस ठूंठ में,
चिरैयों को,घरौंदा बनाते देखा है॥

मिजाज़ ना बदलेंगे मेरे जनाब के,
पानी को बर्फ, यूँ पिघलाते देखा है॥

चाल बदल जाती है मेरे दीदार से,
उन्हें इस तरह, कदम मिलाते देखा है॥

ना कहो बेरुखी ही छाई रही नूर पे,
उन्हें मेरी नज्मे गुनगुनाते देखा है॥

फिक्रमंद हुए वो कुछ इस तरह मेरे,
दिल की तड़प आंखों से बहाते देखा है॥

जो आज बदली राह इस चौराहे से,
उनको अपने पीछे आते देखा है॥

क्यूँ छोड़ आए?? इस अज़ीज़ शिकवे से,
अपनी बाहों में...उन्हें, आंसू बहाते देखा है॥

~!दीपक
२१-फरवरी-२००९

Saturday, February 21, 2009

मैंने तुझे चाहा बताना चाहता हूँ

मैंने तुझे चाहा, बताना चाहता हूँ,
पर इक बेरुखी सी अंदाज़ में, लाना चाहता हूँ॥

बहुत प्यार की आदत, बुरी होती है,
कुछ कड़वे घूँट भी, पिलाना चाहता हूँ॥

पहल तो अच्छी है, साथ दोगे पर,
इसी विश्वास में कुछ रातें,बिताना चाहता हूँ॥

जानता हूँ मेरे रुख, मौसम से बदलते हैं,
इसीलिए तो झलकियाँ, दिखलाना चाहता हूँ॥

तुम मासूम ही बहुत, अच्छी लगती हो,
कुछ नादानियों पर, खिलखिलाना चाहता हूँ॥

गिले शिकवों को सदा, दूर रखना प्यार से,
हर लम्हे में साथ, मुस्कुराना चाहता हूँ॥

ना कहो कि तेरे लिए, कुछ सोचता नही,
आज हाथों से तुझे, खिलाना चाहता हूँ॥

देख सोचते हुए, तुझे ग़ज़ल से सजा डाला,
अब मेंहदी तेरे हाथों में, लगाना चाहता हूँ॥

~!दीपक
२०-फरवरी-२००९

जुर्रत देखो कैसी इनकी, मुझसे मुहब्बत करते हैं...

मेरे घर में आग लगाकर, पानी डाला करते है...
खुदा खैर करे, इन दिवानों से, मुझे मार मरते है॥

प्यार दिखाने का इनका, अंदाज़ गजब निराला है,
दो पल को मिलते है, और रुलाकर हँसते है॥

दिल में दर्द है कितना, आंखों में कितने आँसू है,
दिल को मेरे छलनी करके, दर्द-ए-दवा करते है॥

हमसफ़र है ऐसे भी, अंधेरों में पहचान न थी,
मैं सूनी राहों पर चला, ये महफिलों में मिलते है॥

सफ़ेद गुलाब काटों वाला, दे नुमाइश कर गए,
रक्त-ए-लाल गुलाब की, हसरतें पाला करते है॥

तूफां में दीपक जब, अंधेरों से लड़ता है,
पुर्वाई घर लाने, खिड़कियाँ खोला करते है॥

दिवाने है मेरे ये, दीवानों से लगते हैं,
जुर्रत देखो कैसी इनकी, और...मुझसे मुहब्बत करते हैं॥

~!दीपक
२०-फरवरी-२००९

कुछ नया लिखने को, क्यों तेरी रूह मचलती नही..

ये कलम खामोश है, आजकल उठती नही...
घिसट घिसट कर, कहती है..., मैं चलती नही॥

कुछ पुरानी बातों को ही, सजा सजा कर लिखते नही...
कुछ नया लिखने को, क्यों तेरी रूह मचलती नही?

संगदिल तो कहते हो, संगदिली से मिलते नही...
जानते हो, टकराए बिना...चिंगारी फूटती नही॥

चांद तारे परियों की, कहानी नई लगती नही...
आदमी और आदमियत की, क्यों बात जुबां करती नही?

खुदाई, मुहब्बत और वफ़ा, जिंदगी से मिलती नही...
सनम को तोहमत देने से, दिल जली मिटती नही॥

आईने को सूरत दिखे, सीरत कभी दिखती नही...
पत्तियों को पानी देने से, गुलनार कभी खिलती नही॥

जब तक ठूंठ ना हुआ हो, कोपलें नई खिलती नही...
हरित पल्लव!!! कूटनीति पर, बहारें चलती नही॥

कैसे दे इंसां को, खुदा कायनात अपनी...
इंसां को इंसानियत ही, जब समझती नही॥

~!दीपक
२० फरवरी २००९

Friday, January 30, 2009

अब हम बड़े, पढ़े-लिखे जिम्मेदार हो गए...

अब हम बड़े, पढ़े-लिखे जिम्मेदार हो गए...
अपनत्व-प्यार से नही, दुनिया से चार हो गए...
छोटी छोटी बातों का ख्याल रखा करते है...
खिलखिलाते नही, मंद मुस्कराहट के सरकार हो गए...

अब हम में डर घर कर गया, और हम दुनिया.. के हो गए...
हर चीज़ का मर्म जानते है, कहा ना कि, समझदार हो गए...
दिल ही दिल में जिंदगी को दबाना जो सीख लिया...
धडकनों की आवाज़ सुनने वाले तो, डॉक्टर हो गए...

जब ख़ुद के लिए ही फुर्सत के नही चंद लम्हे...
बिना काम के मिले हजूर, आप कब से मिलनसार हो गए...

~!दीपक
३० जनवरी २००९

बहुत दिनों बाद लौटा हूँ घर में ,

बहुत दिनों बाद लौटा हूँ घर में ,
हर चीज़ अब बदली बदली नज़र आती है..

मुझे देख जो खिलखिला पड़ता था,
बेहिचक बिन बंधन भगा ले जा पड़ता था...
कहीं अकेले में, अटारी पर, छत पर बातें करता था...
साथ रहता था, किसी से मिलने ना देता था...

अट्टू खेला, लंगडी खिलाई, ताश की महफिल सजाई...
हार जीत की बात कहाँ, बस थी तो मनाई-रुठाई...

मैं बोलता जो किसी से, उसके होंठ बुदबुदाते थे,
मैं हंस कर देखता, वो त्योंरीयां चढाते थे ...
मेरी दाल में नोन, सब्जी में मिर्ची हुआ करती थी ,
और उसको ही पानी का गिलास, गुड की ढिलिया मिला करती थी ...

छुप छुपाते देर रात तक चाँद-तारे निहारना ,
और उनींदे सुबह सुबह पानी भरने जाना ,
वो अमराई की मस्ती के लिए, लोगो को बहलाना
और कुछ ना सूझे तो, मन्दिर ही ले जाना

आज जब आया हूँ, तो उसकी खामोशी ही सुन पाया
या कहीं दूर से, मुरझाई छवि ही देख पाया

थोडी हिचकिचाहट के साथ वो नमस्कार कर चला गया ..
और इन आंखों में बसे वो फीके रंग, फ़िर भर गया ..

दिल में इक टीस उठी, सारा फरक समझ में आया...
मैं दूर रहकर भी अपना हुआ, वो साथ रहकर पराया ..
भौतिकता जब संबंधो की सीढी बन जाती है...
निश्छल हार्दिक रिश्तों की ये, पीढा बन जाती है...

अब हम लोगो में आज इक यही बहुत बड़ा अन्तर है...
मैं कही दूर बैठ, पुराने पन्नो को पलटता हूँ, जोड़ता हूँ
और वो इक इक करके, फाड़ता चला जाता है ...
हवा में उडा उडा कर ,
मुझसे भी आगे ....मुझसे भी दूर...जाना चाहता है...

~!दीपक
३० जनवरी २००९

इक सूखे दरख्त का दर्द बस इतना ही है

छोटी पर संपूर्ण लगती हैं....कुछ आगे लिख ही नही पाया...

कभी कभी वो मुझे, यू भी बुलाते रहे...
जैसे शुष्क आंखों में नमी की, दरकार मुझसे थी...
और कभी कभी वो मुझसे यू भी छुपाते रहे...
जैसे खारी झीलों में बरबस, बरसात मुझसे थी...
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इक सूखे दरख्त का दर्द बस इतना ही है...
कि कोई पंछी अब उस पर, घर बनाता नही...
हरे भरे दरख्तों से बस जलन इतनी ही है...
कि पतझड़ भी अब, सालों साल आता नही...
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किलकारियां जब गूंजती है, संगीत कौन सुनता है
मासूमियत जब मिलती है, इंसानियत कौन चुनता है...
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जो आगाज़ किए बिना ही, अंजाम की बात करते है...
ऐसे नादां दोस्त मुझे, परेशान किया करते है ..

~!दीपक
शायरी २००८

इश्क की बात आशिक ही करता है...

इश्क के कुछ दुष्परिणाम....ना करो फिर भी आशिक तो बना ही देता है...


मैं तो इश्क का मर्ज़ बता रहा था ...
लोगो ने मुझे ही आशिक समझ लिया ...

फ़िर समझ आया,प्यार तो चंदन है ,
वो महक उठा, जिसने कर लिया...
और महका दिया उसे, जो किनारे हो लिया ...

इश्क की बात आशिक ही करता है...
सनम की बातें करने वाला, दीवाना हो लिया...

~!दीपक
११ दिसम्बर २००८

तुम दूर हो मुझसे मेरी यादों से नही

तुम दूर हो मुझसे मेरी यादों से नही..
यूँ ही नही रात भर मुझे सताते हो तुम...

गर रूठ ही जाते, तो इस कदर ना रूठते ...
कि मुझे सुला जाते और कभी ना जगाते तुम ...

इक चाह तुझे भी होगी, कि मना लाऊ तुझे ...
कि खिलखिलाते हुए, यूँ ही रुआंसे ना हो जाते तुम ..

दूर कितना ही करलो, पास ही पाओगे मुझे...
जितना दूर जाते हो, उतना ही लौट आते हो तुम...

कब तक ख़ुद को तन्हा समझाते रहोगे ...
ख़ुद ही तो बात अपनी, सुन नही पाते जो तुम ...


~!दीपक
२३-१२-२००८