Tuesday, September 23, 2008

क्रांति का शान्ति से ज़माना ला रहा...

आग और पानी में यारी करा रहा,
चाँद से सूरज के गले लगा रहा।
मुट्ठी भर भरकर उछालता हूँ ऐसे,
वसुधा को आसमां से ऊपर उठा रहा॥

है हौसला समुन्दर पीने का भी,
धक्के दे देकर पर्वत हिला रहा।
दूर जा बैठा जो सहम कर खुदा,
लड़ते लोगो को उसका अक्श दिखा रहा॥

जुगनुओं की चमक दिन में भी देखेंगे अब,
रात को कुछ इस तरह दीपक डरा रहा।
जड़ें इतनी जमा दी बरगदों की जमीं पर,
बवंडरों को अपनी ही शाखों पर झुला रहा॥

कुछ बदला, कुछ बदलेगा, कुछ बदलना चाहिए,
एक् और एक् ग्यारह का पहाडा बना रहा।
बूँद बूँद गिराकर सिलवटें तोड़ता निर्झर,
हुंकारे भर भरकर शिलाएं बहा रहा॥

रेगिस्तां में तितलियाँ उडे इतनी आजाद,
रेत की रेत से ही मिटटी बना रहा।
रकीब और आईने की दोस्ती मैंने तोड़ दी,
क्रांति से शान्ति का ज़माना ला रहा॥


~!दीपक
२३ सितम्बर २००८

Tuesday, June 17, 2008

मुझे समझते रहोगे उम्र भर...

मुझे समझते रहोगे उम्र भर...
मैं उलझाता रहूँगा उम्र भर...
बदरंगी मे खोने ना दूँगा...
रंग बिखेरता रहूँगा उम्र भर...

जब कभी तुम रोना चाहो...
रो ना पाओगे मेरे सामने...
हँसते हँसते रुला ना दूँ....
वो दर्द दूँगा उम्र भर...

दूर ना जा पाओगे कभी...
कि साथ चलता रहूँगा...
और जब तुम दौड़ने लगो...
छोड़ जाऊंगा उम्र भर...

तुम जाम समझ कर पीते रहो...
मेरी दोस्ती है वो नशा...
पैमाना न खाली हो कभी...
झूमते रहोगे उम्र भर...

कई आंखों मे छुपा रहता हूँ...
कई दिलों मे धड़कता हूँ...
कि लबों पर आते आते...
याद बन जाता हूँ उम्र भर...

~!दीपक
१७-जून-२००८

Tuesday, January 22, 2008

कोई समझा दे उस पगली को...

कोई समझा दे उस पगली को,
अलग थलग जो चलती है,
कि बिन दीपक - ज्योति भी,
दावानल सी जलती है....

बहारों से सजे तरु मंडल,
पंछी कलरव से गूंजते हैं,
कि उखड जाते एक पल मे,
नींव जो तल से हिलती है...

असीम सिंधु राशि से,
साहिल कहीं तो मिलते हैं,
कि उछल कूद करती सरिता,
बिन तट के ना बहती है...

यूं ही किसी ऊंचाई को,
आयाम नही मिलते हैं,
कि बिन डोर कभी पतंग,
आसमां मे ना उड़ती है ...

जो कोशिश करो जाने की,
जिंदगी - मौत बनती है,
कि इस चराचर जगत मे,
रूह जिस्म मे रहती है....

~!दीपक
२२-०१-२००८

Monday, January 21, 2008

प्यार रिश्ता नही जो निभाऊ...

प्यार रिश्ता नही जो निभाऊ,
यह जिंदगी है जीने के लिए...
भूलती हो कैसे जो याद आऊ,
साथ हूँ सदा तुझे हँसाने के लिए

मेरा रास्ता क्यों देखती हो,
ना मिलूंगा इन धूमिल राहों मे...
दिल मे झाँक जो गुहार लगाओ,
मिल जाऊ गले लगाने के लिए

तेरे आँसू नही हैं ये,
क़यामत के दरबान हैं...
एक् बार भी ना मरूँगा,
तुझे रुलाने के लिए

मैं सांस नही लेता,
तेरी खुशबू जिला देती है...
काफी है दामन छूट जाना,
मुझे तड्पाने के लिए

इंतज़ार न कर रात-दिन,
तुझ बिन न रह पाउँगा...
ना कह जुदा होता हूँ मैं,
तुम्हे आजमाने के लिए

~!दीपक
२१-०१-२००८