Tuesday, December 27, 2011

ये बात और है!!!

तेरी परछाई से पहचान लेता हूँ तुझे,
      तुम फिर भी घूंघट रखो, ये बात और है|

दुनिया की रस्मे और तुम्हारी कसमे मेल नहीं खाती,
      तुम फिर भी खुश रहो, ये बात और है|

तेरी बाहों में यथार्थ स्वप्न बन जाता है,
      कभी स्वप्न भी यथार्थ बने, ये बात और है|

~!दीपक
२२-नवम्बर-२०११