Sunday, August 2, 2009

हम दोनों फिर उन दिनों में डूबे है..

आज बारिश भी है..
और गरमागरम चाय भी
सौंधी खुशबू से सजे समोसे भी है...

नहीं है तो बस..वो जीवंत ठहाके,
वो हँसी विनोद, दोस्ती के धमाके

कभी यूँ सीढियॉ पर,
बंद दुकानों की देहलानो पर..
काफी हाउस की मेजो पर..
सड़क किनारे, साइकिलों पर

उन कुछ एक पलों में
समय थाम लेते थे..
और पलों में उड़ते हुए
कायनात नाप लेते थे

सपनो में ना जाने क्या-क्या पाया था
बड़ी बड़ी फ़िक्र भी राख बना उड़ाया था

ना पता था एक दिन...
हम भी यूँ उड़ जायेंगे
कभी पंछियों से कलरव करते
एकाकी हंस बन जायेंगे

वाकई लम्बी दूरी तय कर ली है
उन दिनों की यादें छू नहीं पाती
समय अब हमको नाप रहा है..
राख वापस उड़ उड़ है डराती

पर मै डरता नहीं,
दोस्ती में डर नहीं होता
दूरी नहीं होती, मंजर नहीं होता.

भटकता हुआ वापस उन्ही राहों पर जाना है
कुछ ना बदलेगा, वो विश्वास पाना है..

खैर, चाय कुछ कड़वी सी बनी है...
समोसों में नमक भी कम कम सा है..
घर के अन्दर बारिश का मजा कुछ नहीं...

मै निकल आया हूँ, भीग रहा हूँ,
बारिश की बूंदों में वो ख़ुशी ढूंढ रहा हूँ..
कुछ अपनापन आज भी इन बूंदों में है..
समय फिर से रुक कर मुझे देखता है..
मुस्कुराता है, और बैठ जाता है...

हम दोनों फिर उन दिनों में डूबे है..
और उन दिनों की यादें आज
चाय की चुस्कियों को मीठा कर रही है...

~!दीपक
२-अगस्त-०९