Tuesday, October 23, 2012

कई शामें हुई आज शमा जलाई है

कई शामें हुई आज शमा जलाई है
जिन्दा होती यादों में चिंगारी लगाईं है 

दिल है कि थमने का नाम नहीं लेता..
अँधेरे में तलाशता तेरी परछाई है

तेरे दीदार की हसरतें भी ना थी 
तुम दिख गए, क्या रुसवाई है

अब पर्दा भी नहीं करते वो बेहया
हमें सर-ए-महफ़िल शर्म आई है

खौफ -ए-खुदा हम जाम नहीं लेते
दस्तूर-ए-हुस्न मयकशी छाई है

तनहा नहीं रहने देती मुझे तन्हाई
कई शामें हुई आज शमा जलाई है

~!दीपक 
२३-अक्टूबर-२०१२

Friday, May 4, 2012

तो मै फिर किसी से क्या कहूं...

सांवली सी परछाई मुझसे, आज शिकायत करती हुई बोली..
क्यूँ कहते हो अँधेरे में.. मै भी साथ छोड़ जाती हूँ
जानते हो..
उजाले में तो मै सिर्फ तुम्हारे साथ चलती हूँ..
और अँधेरे में, मै तुम्हारे चारों ओर छा जाती हूँ

अब तुम बालमन इसे भी अंधियारा ही समझो...
तो मै फिर किसी से क्या कहूं...

~!दीपक
०४-मई-२०१२