तेरी परछाई से पहचान लेता हूँ तुझे,
तुम फिर भी घूंघट रखो, ये बात और है|
तुम फिर भी घूंघट रखो, ये बात और है|
दुनिया की रस्मे और तुम्हारी कसमे मेल नहीं खाती,
तुम फिर भी खुश रहो, ये बात और है|तेरी बाहों में यथार्थ स्वप्न बन जाता है,
कभी स्वप्न भी यथार्थ बने, ये बात और है| ~!दीपक
२२-नवम्बर-२०११