कई शामें हुई आज शमा जलाई है
जिन्दा होती यादों में चिंगारी लगाईं है
दिल है कि थमने का नाम नहीं लेता..
अँधेरे में तलाशता तेरी परछाई है
तेरे दीदार की हसरतें भी ना थी
तुम दिख गए, क्या रुसवाई है
अब पर्दा भी नहीं करते वो बेहया
हमें सर-ए-महफ़िल शर्म आई है
खौफ -ए-खुदा हम जाम नहीं लेते
दस्तूर-ए-हुस्न मयकशी छाई है
तनहा नहीं रहने देती मुझे तन्हाई
कई शामें हुई आज शमा जलाई है
~!दीपक
२३-अक्टूबर-२०१२
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