Friday, September 4, 2009

आँख लिए घूमता, अँधा नज़र आया

तन्हाइयों का देखो, कैसा मंजर आया,
मै तन्हा नज़र आया, वो तन्हा नज़र आया|

वो रूठे तो कुछ, अलग पहर आया,
हम भी जो रूठे, जुदाई का भंवर आया|

हर एक से छुपाया, जो शख्स नज़र आया,
अंधेरों को दीपक भी, सहर नज़र आया|

प्यासों को याद, गाँव का निर्झर आया,
प्यासों के साथ, पापी शहर आया|

आँखों में आँसू नहीं, पत्थर नज़र आया.
आँख लिए घूमता, अँधा नज़र आया|

~!दीपक
४-सितम्बर-०९

1 comment:

योगेन्द्र मौदगिल said...

वाह दीपक जी, भावात्मक रचना..... लिखते रहिये.... साधुवाद....

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