तन्हाइयों का देखो, कैसा मंजर आया,
मै तन्हा नज़र आया, वो तन्हा नज़र आया|
वो रूठे तो कुछ, अलग पहर आया,
हम भी जो रूठे, जुदाई का भंवर आया|
हर एक से छुपाया, जो शख्स नज़र आया,
अंधेरों को दीपक भी, सहर नज़र आया|
प्यासों को याद, गाँव का निर्झर आया,
प्यासों के साथ, पापी शहर आया|
आँखों में आँसू नहीं, पत्थर नज़र आया.
आँख लिए घूमता, अँधा नज़र आया|
~!दीपक
४-सितम्बर-०९
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
1 comment:
वाह दीपक जी, भावात्मक रचना..... लिखते रहिये.... साधुवाद....
और हां टिप्पणी बाक्स से वर्डवेरिफिकेयन हटाइये
Post a Comment