Sunday, December 20, 2009

उससे बिछड़ जाने का क्यूँ गिला है मुझे..

उससे बिछड़ जाने का क्यूँ गिला है मुझे..
मैंने तो उस से बात भी की ना थी...
एक नज़र देखा था मदहोशी में...
एक जाम में नफासत खोई ना थी...

बस देखता ही रहा उसके नूर को
आखों में इतनी ताजगी पहले ना थी
फिर जुबां पर ही ताला कैसे लगा..
शायद, उससे गुफ्तगू हो तो रही थी...

छोड़ आया जब उस गली को..
दिल में धड़कने, रही ना थी...
ज़माने ने मुझको उलझा लिया
कदमो में हलचल रही ना थी

सोचता हूँ कही तो मिल जाऊ फिर से
अचानक ही जैसे, उम्मीद ना थी
कुछ तो बात होगी ...
जैसे, कभी कोई बात ना थी...


~!दीपक
२०-१२-२००९

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