Sunday, January 17, 2010

शायरी २०१०

हटा लो जुल्फों को, डूबते का सहारा ना बनेगी ये...
आँखों में गर कोई उतरे,  तो डूबे तो सुकून से...

जो रूखा रूखा सा मिलता था कभी.. दिन हुए उसकी शक्ल नहीं देखी...
महफ़िलों में रहा, मंजिलो के बिना... जिस पर चला, वो राह नहीं देखी...

मुस्कुराने के बहाने और भी मिलेंगे...
हमे भूल जाओ, लोग और भी मिलेंगे....

साहिल से दोस्ती ही तो निभाती है लहरें..
प्यार सागर से किया उसी में समाती है लहरें...

प्यासों को याद, गाँव का निर्झर आया,
प्यासों के साथ, पापी शहर आया|

इस बारिश में धो डालते जुम्बिशे अपनी...
क्या करे कि इस बरस, पानी नहीं बरसा..

~!दीपक
२०१० 

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