हमने सुना था तेरी धरती में सीता मैया समाई थी..
फिर राम-रहीम की चिंगारी किसी ने सुलगाई थी..
हे भव्य अयोध्या! तू बता..तेरे गर्भ में कौन है,
सरयू की धाराएं तो पहले ना कंपकंपाई थी...
क्यूँ हर किसी को, तुझ पर हक जताना है,
क्या तूने कभी अपनी इच्छा ना जताई थी??
कैसा लगता है जब हर कोई तुझे कपडे पहनाता है,
क्या तू अपनी ओढ़नी कही छोड़ आई थी???
किसी को गर सुनाना है, तू अपनी बात सुना
हर किसी की जुबाँ ने तेरी अफवाहे सुनाई थी..
अब भी खेलेंगे तेरी छाती से काफिर..
मंदिर-मस्जिद से जिसने आस्था चुराई थी...
राम तुझमे जन्मे, रहीम तुझपर पले...
तेरी ही पूजा पर किसी ने ना कराई है...
गर कुछ बनाना ही पड़े तो तेरा मंदिर बने..
एक तेरी ही आत्मा युग युग से समाई है...
~!दीपक
३०-सितम्बर-२०१०
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4 comments:
भई वाह ....बहुत बढ़िया ...
दीपक जी आपने कमाल की रचना
लिख दी ....
आभार ....
Dhanyabad Virendraji..
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