थाम लेता डोर को तो, वो समय ना जाता...
आज इंतज़ार क्यूँ करूं जो वापस नही आता
मेरे पैरों में तो ताकत है, मन को समझाना है
मैं ही चला जाऊ, गर वो नही आता...
गर मैं अभी वही हूँ, तो दुनिया कैसे बदली
कोई भेद होता, तो शायद इसे समझाता
उसके पलट जाने का क्यों मैं खेद रखूँ
अब उसके दांत नही, इसलिए नही मुस्कुराता..
~!दीपक
१०-जुलाई-२०१०
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1 comment:
बेहतरीन!
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