Wednesday, November 21, 2007

इंतज़ार रहता है...

इंतज़ार रहता है...
लहराती जुल्फों का
उड़ती चुनरी का
महकती साँसों का
आपका ....
पल कटते नही...
बस ठहर जाते हैं...
जैसे इबादत करते हो,
तुम्हारे आ जाने का...

जैसे ओस जीती है,
सौंधी महक होती है...
इन्द्र धनुष झूमता है...
ख्याल घूमता है...
मुस्कान फैलती है...
नज़रें मिलती है...
तेरे साथ की तो,
बात ही इतनी होती है...

तुम आ जाते हो...
सदा के लिए यादों मे..
नीदों मे, ख्वावों मे
फ़िर भी इंतज़ार रहता है
बस तुम्हारा...
क्या खुशी है,
जिसका बयाँ नही
कोई लफ्ज़ नही,
जुबाँ नही...
बस खोया रहता हूँ
तेरे साथ ...
सबसे अलग
नशीले...
तेरे इंतज़ार मे...

~!दीपक
२१-११-२००७

रूह भटकती नही.....मैं भटकता हूँ...

मैं सांस ले रहा हूँ, साथ तेरे जीने के लिए...
ऐ जिंदगी कभी तो अपनी शक्ल दिखा जा
भागते भागते मुझसे अब, थमा नही जाता...
कभी तो शहरों को भी मेरे साथ भगा जा

जीना तो बहुत कुछ चाहता हूँ मैं,
पर हर किसी से साँसे मिलाती नही
तन्हाई से इस कदर याराना हो चला कि
धड़कन मिलाते हैं उन्ही से, आखें मिलती नही...

मैं जी रहा हूँ, क्या वाकई मैं जी रहा हूँ?
हँसना भी जहाँ सभ्यता कि खिलाफत होती है,
मियाद पूरी करना मैं पसंद नही करता,
फिर क्यों मुझी से मेरी शिकायत होती है

मैं... जी रहा हूँ, साँसे चालू हैं...
दिल धड़कता है, रूह भटकती नही...
रूह भटकती नही!!!!...मैं भटकता हूँ....
बस तेरे लिए.....मैं भटकता हूँ!!!!!

~!दीपक
२१-११-२००७

Tuesday, November 6, 2007

जहाँ महल बनाते हैं, लहर वहीं आती है...

रेत के महल बनाने का शौक तो बहुत है हमें,
पर जहाँ महल बनाते हैं, लहर वहीं आती है

हमारी आशिक-मिजाजी दुनिया मी मशहूर होती,
पर स्वप्न-सुन्दरी हमारी, बस अच्छी दोस्त बन जाती है

बन-ठन कर आये थे, उनसे गुफ्तगू के लिए,
पर जिस दिन ना नहाया हो, वो कमबख्त उसी दिन ही आती है

दिल तो चाहता है, दिलबर हमारा भी हो,
पर उनकी फिक्र करना, हमारी बेफिक्री को सताती है,

वो दिन भी क्या थे, जब सुनते थे हम गज़लें भरपूर,
अब तो तनिक सी आवाज़ भी, कानों को चुभ जाती है

ऐ मालिक ऐसा भी हो, जो सोचता हूँ मैं कभी,
पर जरूरत पर तो, प्रार्थना भी तुझ तक नही जाती है

दीपक जैन
०६-११-२००७