मैं सांस ले रहा हूँ, साथ तेरे जीने के लिए...
ऐ जिंदगी कभी तो अपनी शक्ल दिखा जा
भागते भागते मुझसे अब, थमा नही जाता...
कभी तो शहरों को भी मेरे साथ भगा जा
जीना तो बहुत कुछ चाहता हूँ मैं,
पर हर किसी से साँसे मिलाती नही
तन्हाई से इस कदर याराना हो चला कि
धड़कन मिलाते हैं उन्ही से, आखें मिलती नही...
मैं जी रहा हूँ, क्या वाकई मैं जी रहा हूँ?
हँसना भी जहाँ सभ्यता कि खिलाफत होती है,
मियाद पूरी करना मैं पसंद नही करता,
फिर क्यों मुझी से मेरी शिकायत होती है
मैं... जी रहा हूँ, साँसे चालू हैं...
दिल धड़कता है, रूह भटकती नही...
रूह भटकती नही!!!!...मैं भटकता हूँ....
बस तेरे लिए.....मैं भटकता हूँ!!!!!
~!दीपक
२१-११-२००७
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