Tuesday, November 6, 2007

जहाँ महल बनाते हैं, लहर वहीं आती है...

रेत के महल बनाने का शौक तो बहुत है हमें,
पर जहाँ महल बनाते हैं, लहर वहीं आती है

हमारी आशिक-मिजाजी दुनिया मी मशहूर होती,
पर स्वप्न-सुन्दरी हमारी, बस अच्छी दोस्त बन जाती है

बन-ठन कर आये थे, उनसे गुफ्तगू के लिए,
पर जिस दिन ना नहाया हो, वो कमबख्त उसी दिन ही आती है

दिल तो चाहता है, दिलबर हमारा भी हो,
पर उनकी फिक्र करना, हमारी बेफिक्री को सताती है,

वो दिन भी क्या थे, जब सुनते थे हम गज़लें भरपूर,
अब तो तनिक सी आवाज़ भी, कानों को चुभ जाती है

ऐ मालिक ऐसा भी हो, जो सोचता हूँ मैं कभी,
पर जरूरत पर तो, प्रार्थना भी तुझ तक नही जाती है

दीपक जैन
०६-११-२००७

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