Thursday, April 29, 2010

मेघ तुम क्यूँ आये....

मेघ तुम क्यूँ आये....
आक्रोश कुछ तपने तो दिया होता.
दलदल सा जीवन फटने तो दिया होता..
हरी भरी खुशियों को पकने तो दिया होता!!!

यूँ चले आना तुम्हारा..अकस्मात्
षड़यंत्र कोई गहरा सा लगता है
कौतुहल से भरा संदेशा लगता है
क्रांति सा कोई अचम्भा लगता है

प्रियतमा की तड़प लगती है
पपीहे की चहक लगती है
गर्म लू से हिलती डंठलों को
आषाढ़ की झलक लगती है

कुटिया में वैभव शोभा नहीं देता
महर्षि-अप्सराओं का संगम ना दिखलाओ..
सच्चे मन से पूछता हूँ...
यूँ चले आने का कारण तो बतलाओ...

ये सच है प्रार्थना बहुत की है प्रभु से
पर ऐसी कृपादृष्टि अनायास नहीं होती
संघर्षरत हूँ, यूँ मन ना बहलाओ
कुछ क्षणों की ख़ुशी का रहस्य समझाओ..

मेघ तुम क्यूँ आये..सावन अभी दूर है
मै चला आऊंगा, संशय में ना रहो
मै तपता हुआ पुंज हूँ, सावन खींच लाऊंगा
तुम धमाधम बरसने की तैयारियों में रहो...

~!दीपक
३०-अप्रैल-२०१०

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