Thursday, May 20, 2010

क्यों मुझे सता तेरा सवाल रहा...

रात भर सताता एक सवाल रहा
नींद ना आई, आपका ख्याल रहा
एक जिद सी थी तुम्हे पाने की
तुम्हारा वो डर, किये बेहाल रहा

छोटी सी एक बात कितनी बड़ी हुई
तूफ़ान जिसके सामने निढाल रहा
कातिल नज़र आये हर तरफ घूमते
बीच मैदान मै खड़ा, होता हलाल रहा

प्यार में डर आखिर होता क्यूँ है
क्यूँ निर्भीक नहीं इसे संभाल रहा
मंजिले जो पानी थी वो पा गया
क्यों मुझे सता तेरा सवाल रहा

छोड़ ना जाना कि बस में नहीं मै अब
कटी पतंग में नहीं कोई कमाल रहा
थाम लेना डोर तुम अपने हाथों में
भटका देगा मुझे जो तेरा सवाल रहा


~!दीपक
२०-मई-२०१०

4 comments:

संजय भास्‍कर said...

... बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति है ।

संजय भास्‍कर said...

हर शब्‍द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

संजय भास्‍कर said...

बहुत से गहरे एहसास लिए है आपकी रचना ...

Dpaknjn said...

बहुत बहुत धन्यवाद संजयजी...