Thursday, December 13, 2007

किनारों की न सोच...

क्यो खुद को तन्हा समझती हो....
तेरी हर पुकार पर, हम पास खडे मिलेंगे....

साथ जिंदगी भर देंगे, हमसफ़र समझ लेना...
तुम गुजरों कितनी ही बार, हम सड़क है, यही पड़े मिलेंगे...

फिर भी गर तुम रोती हो, तन्हा खुद को समझती हो,
खुद मे झाँक कर देख लेना, तेरी हर सांस मे हम मिलेंगे...

कभी कुछ कहा नही जाता, कभी जुदा भी होना पड़ता है...
प्यार जब जवां हो जाये, तकरार करते हम मिलेंगे....

बस मुस्कुरा देना इक बार, ना रोना कभी तुम,
तेरी हर मुस्कान पर, कुर्बान हम मिलेंगे....

तुम सब कुछ हो मेरी, तुमसे ही तो मैं जिया हूँ,
किनारों की ना सोच, वो साथ तो चलेंगे, पर कभी ना मिलेंगे....

~!दीपक
१३-१२-२००७

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