रात भर सताता एक सवाल रहा
नींद ना आई, आपका ख्याल रहा
एक जिद सी थी तुम्हे पाने की
तुम्हारा वो डर, किये बेहाल रहा
छोटी सी एक बात कितनी बड़ी हुई
तूफ़ान जिसके सामने निढाल रहा
कातिल नज़र आये हर तरफ घूमते
बीच मैदान मै खड़ा, होता हलाल रहा
प्यार में डर आखिर होता क्यूँ है
क्यूँ निर्भीक नहीं इसे संभाल रहा
मंजिले जो पानी थी वो पा गया
क्यों मुझे सता तेरा सवाल रहा
छोड़ ना जाना कि बस में नहीं मै अब
कटी पतंग में नहीं कोई कमाल रहा
थाम लेना डोर तुम अपने हाथों में
भटका देगा मुझे जो तेरा सवाल रहा
~!दीपक
२०-मई-२०१०
Thursday, May 20, 2010
Thursday, May 13, 2010
वो शिकवा भी करते है और इंतज़ार भी..
वो शिकवा भी करते है और इंतज़ार भी
खुदा से दुआऐ मांगते, रहते है बेक़रार भी
हमसे मिलना भी नहीं और जुदा रहना नहीं
मुहब्बत की नेम बख्शी, पानी भी आग भी
दिनों को गिना करते हैं राते कटती नहीं
फकीर से आज़ाद भी इश्क के बीमार भी
लौटकर आ जाते है छोड़कर जाते नहीं
साहिल की लहरें भी, और पिंज़रेदार भी
रुख्सत कर दे शख्सियत जहां से मेरी
एक मेरी जान भी, और तेरी याद भी
~!दीपक
१३-मई-२०१०
खुदा से दुआऐ मांगते, रहते है बेक़रार भी
हमसे मिलना भी नहीं और जुदा रहना नहीं
मुहब्बत की नेम बख्शी, पानी भी आग भी
दिनों को गिना करते हैं राते कटती नहीं
फकीर से आज़ाद भी इश्क के बीमार भी
लौटकर आ जाते है छोड़कर जाते नहीं
साहिल की लहरें भी, और पिंज़रेदार भी
रुख्सत कर दे शख्सियत जहां से मेरी
एक मेरी जान भी, और तेरी याद भी
~!दीपक
१३-मई-२०१०
हाँ, हम कविता करते है....
जीवंत क्षण चित्रित कर
पीयूष तत्व से भरना
सत्वों से पर रचते है
तत्व साकार करते है
सृष्टिकर्ता सी अनुभूति...
ईश्वरीय स्पर्श सी कृति
दृष्टि में सृजन रखते है
शब्दों से रंग भरते है
केवल कविता नहीं है..
दर्शनीय श्वास-छंद है
यम से द्वन्द करते है
उत्कर्ष प्रचंड करते है
उत्सवों के उल्लासों में
युद्ध में मिली विजय नहीं
हलधर के स्वेत झरते है
स्नेह कुमुद खिरते है
ये कोर कल्पनाएँ नहीं
विनाश की छटाएं नहीं
दीप से दीप जलते है
उज्जवल आलोक बनते है
खुद को जन्मते रहना
सुरभित सुमन मंडल सा
रक्तबीज से उभरते है
हाँ, हम कविता करते है....
~!दीपक
१३-मई-२०१०
पीयूष तत्व से भरना
सत्वों से पर रचते है
तत्व साकार करते है
सृष्टिकर्ता सी अनुभूति...
ईश्वरीय स्पर्श सी कृति
दृष्टि में सृजन रखते है
शब्दों से रंग भरते है
केवल कविता नहीं है..
दर्शनीय श्वास-छंद है
यम से द्वन्द करते है
उत्कर्ष प्रचंड करते है
उत्सवों के उल्लासों में
युद्ध में मिली विजय नहीं
हलधर के स्वेत झरते है
स्नेह कुमुद खिरते है
ये कोर कल्पनाएँ नहीं
विनाश की छटाएं नहीं
दीप से दीप जलते है
उज्जवल आलोक बनते है
खुद को जन्मते रहना
सुरभित सुमन मंडल सा
रक्तबीज से उभरते है
हाँ, हम कविता करते है....
~!दीपक
१३-मई-२०१०
तुम छुपोगे, मै निकाल लाऊंगा...
ये आया मै, संभालो मुझे
देखे कितनी गहराई है तुझमे
तलहटियों तक डूबके देखूंगा
कितनी फिसलन है उसमे
तुम कहाँ पर छुपोगे...
सोचकर कि मै ना आऊंगा
ये तो दरिया है पानी का
तुम छुपोगे, मै निकाल लाऊंगा...
~!दीपक
०८-मई-२०१०
देखे कितनी गहराई है तुझमे
तलहटियों तक डूबके देखूंगा
कितनी फिसलन है उसमे
तुम कहाँ पर छुपोगे...
सोचकर कि मै ना आऊंगा
ये तो दरिया है पानी का
तुम छुपोगे, मै निकाल लाऊंगा...
~!दीपक
०८-मई-२०१०
गर हराना है तो तुम्हे हराया जाये...
क्यूँ ना कुछ मछरियाँ पकड़ी जाए
क्यूँ ना पानी में घात लगाईं जाये
या प्रतिबिम्ब से ही खेला जाये
या बस यूँ ही छलांग लगाईं जाए
मगर का शिकार भी कर ले आज
चलो कुछ अनोखा आजमाया जाए
तुम तपते रहो दिवाकर...
गर हराना है तो तुम्हे हराया जाये
~!दीपक
०६-मई-२०१०
क्यूँ ना पानी में घात लगाईं जाये
या प्रतिबिम्ब से ही खेला जाये
या बस यूँ ही छलांग लगाईं जाए
मगर का शिकार भी कर ले आज
चलो कुछ अनोखा आजमाया जाए
तुम तपते रहो दिवाकर...
गर हराना है तो तुम्हे हराया जाये
~!दीपक
०६-मई-२०१०
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