जीवंत क्षण चित्रित कर
पीयूष तत्व से भरना
सत्वों से पर रचते है
तत्व साकार करते है
सृष्टिकर्ता सी अनुभूति...
ईश्वरीय स्पर्श सी कृति
दृष्टि में सृजन रखते है
शब्दों से रंग भरते है
केवल कविता नहीं है..
दर्शनीय श्वास-छंद है
यम से द्वन्द करते है
उत्कर्ष प्रचंड करते है
उत्सवों के उल्लासों में
युद्ध में मिली विजय नहीं
हलधर के स्वेत झरते है
स्नेह कुमुद खिरते है
ये कोर कल्पनाएँ नहीं
विनाश की छटाएं नहीं
दीप से दीप जलते है
उज्जवल आलोक बनते है
खुद को जन्मते रहना
सुरभित सुमन मंडल सा
रक्तबीज से उभरते है
हाँ, हम कविता करते है....
~!दीपक
१३-मई-२०१०
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2 comments:
वाह! कमाल की पंक्तियाँ है!
सिर्फ एक शब्द,बेहतरीन !
बहुत ही भावपूर्ण निशब्द कर देने वाली रचना . गहरे भाव.
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