Thursday, December 20, 2007

दीपक जलाता है जरूर...

गज़ब का सुकूं है आज, तूफां की दस्तक लगती है,
कि वो खिड़की खुली नही, तू ..रोया है जरूर...

वो अश्क ही हैं तेरी आंखों मे, नूर-ए-मोती नही
कि दिल जख्मी हुआ है आज, लहू बहा है जरूर...

खुद को कैद करके, पीर-ए-पैगाम ना लिख
कि खामोशी की जुबां नही, वो शोर सुनता है जरूर...

बस लड़खडाया ही है तू, पैरों पे अपने यकीं रख,
कि सच को चलता देख, काफिर भागता है जरूर...

खुदा से ना डरता हो, दुनिया से वो डरता हैं,
कि हर बदनाम भी यहाँ, नाम कमाता है जरूर...

प्यार तूने किया उसने दगा, तू पानी बचाकर रख,
कि अंधेरे का बादशाह भी, दीपक जलाता है जरूर...

बेवफाई कर उसने भी, दुनियादारी ही निभाई है,
कि जो तकदीर थी हमारी, आज किसी की तकदीर है जरूर...

गरजती उछलती लहरें, पहले समंदर से नाता तोड़ती है,
कि साहिल से टकरा बेदम हुई, समंदर मे लौटती है जरूर...

~!दीपक
२०-१२-२००७

Tuesday, December 18, 2007

मिलने की ख़ुशी मे फूल थमा दिए गए...

मकां की कीमत उसमे बसे चाँद से होती है,
कौन जाने मकां गिरे, या गिरा दिए गए...

तेरी जुदाई मे हमने बस अश्क ही पिए हैं,
कोई तो बता दे, तुम छोड़ गए या छुडा दिए गए...

मैं हार ना माना था हिम्मत जवाब दे गयी,
वह मुस्कुरा देते, पर सर झुका लिए गए...

तुम ना भूल पाओगे मुझे खलिश सा चुभता रहूँगा,
निशां तो बन जायेंगे ही, कील जो निकाल लिए गए...

ना गिला रखना गर तन्हा पड़ जाओ तुम,
मैं साथ रहूँगा, फासले चाहे बढ़ा लिए गए...

कमबख्त ये इश्क है ही ऐसा ना जीने देगा ना मरने,
कब्र पर आये वो, मिलने की ख़ुशी मे फूल थमा दिए गए...

शुक्रगुजार हूँ तेरा कि कभी तो तेरा अपना हुआ,
अब तो बेगानो से दोस्ती है, अपने बेगाने बना लिए गए...

~!दीपक
१८-१२-२००७

Thursday, December 13, 2007

शायद आजमाता हूँ...

तुम बेबस थी, रो तो लेती थी,
हम तो ना हंस पाए, ना रो पाए....

जब तक मकां था, साथ रहें...
जहाँ छत गयी, छोड़ आये

अब बेवफा ना कहना, तुझे खुश रखना था,
तेरी हर पल हसी के लिए, तुम से भी मुँह मोड़ आये...

प्यार मे साथ जीना, मायने रखता है?
इक-दूजे के लिए जीना, शायद इतना ही पढ़ पाए।

जुदाई मे गम नही होता, यादें मुस्कुरा देती हैं,
हरदम मुस्कुराने को हमदम, तुझे छोड़ना था, छोड़ आये।

मिलूंगा फिर तुझे, शायद आजमाता हूँ,
मोहब्बत ये हमारी, देखें कोई तोड़ ना जाये।

~!दीपक
१३-१२-२००७

किनारों की न सोच...

क्यो खुद को तन्हा समझती हो....
तेरी हर पुकार पर, हम पास खडे मिलेंगे....

साथ जिंदगी भर देंगे, हमसफ़र समझ लेना...
तुम गुजरों कितनी ही बार, हम सड़क है, यही पड़े मिलेंगे...

फिर भी गर तुम रोती हो, तन्हा खुद को समझती हो,
खुद मे झाँक कर देख लेना, तेरी हर सांस मे हम मिलेंगे...

कभी कुछ कहा नही जाता, कभी जुदा भी होना पड़ता है...
प्यार जब जवां हो जाये, तकरार करते हम मिलेंगे....

बस मुस्कुरा देना इक बार, ना रोना कभी तुम,
तेरी हर मुस्कान पर, कुर्बान हम मिलेंगे....

तुम सब कुछ हो मेरी, तुमसे ही तो मैं जिया हूँ,
किनारों की ना सोच, वो साथ तो चलेंगे, पर कभी ना मिलेंगे....

~!दीपक
१३-१२-२००७

Wednesday, November 21, 2007

इंतज़ार रहता है...

इंतज़ार रहता है...
लहराती जुल्फों का
उड़ती चुनरी का
महकती साँसों का
आपका ....
पल कटते नही...
बस ठहर जाते हैं...
जैसे इबादत करते हो,
तुम्हारे आ जाने का...

जैसे ओस जीती है,
सौंधी महक होती है...
इन्द्र धनुष झूमता है...
ख्याल घूमता है...
मुस्कान फैलती है...
नज़रें मिलती है...
तेरे साथ की तो,
बात ही इतनी होती है...

तुम आ जाते हो...
सदा के लिए यादों मे..
नीदों मे, ख्वावों मे
फ़िर भी इंतज़ार रहता है
बस तुम्हारा...
क्या खुशी है,
जिसका बयाँ नही
कोई लफ्ज़ नही,
जुबाँ नही...
बस खोया रहता हूँ
तेरे साथ ...
सबसे अलग
नशीले...
तेरे इंतज़ार मे...

~!दीपक
२१-११-२००७

रूह भटकती नही.....मैं भटकता हूँ...

मैं सांस ले रहा हूँ, साथ तेरे जीने के लिए...
ऐ जिंदगी कभी तो अपनी शक्ल दिखा जा
भागते भागते मुझसे अब, थमा नही जाता...
कभी तो शहरों को भी मेरे साथ भगा जा

जीना तो बहुत कुछ चाहता हूँ मैं,
पर हर किसी से साँसे मिलाती नही
तन्हाई से इस कदर याराना हो चला कि
धड़कन मिलाते हैं उन्ही से, आखें मिलती नही...

मैं जी रहा हूँ, क्या वाकई मैं जी रहा हूँ?
हँसना भी जहाँ सभ्यता कि खिलाफत होती है,
मियाद पूरी करना मैं पसंद नही करता,
फिर क्यों मुझी से मेरी शिकायत होती है

मैं... जी रहा हूँ, साँसे चालू हैं...
दिल धड़कता है, रूह भटकती नही...
रूह भटकती नही!!!!...मैं भटकता हूँ....
बस तेरे लिए.....मैं भटकता हूँ!!!!!

~!दीपक
२१-११-२००७

Tuesday, November 6, 2007

जहाँ महल बनाते हैं, लहर वहीं आती है...

रेत के महल बनाने का शौक तो बहुत है हमें,
पर जहाँ महल बनाते हैं, लहर वहीं आती है

हमारी आशिक-मिजाजी दुनिया मी मशहूर होती,
पर स्वप्न-सुन्दरी हमारी, बस अच्छी दोस्त बन जाती है

बन-ठन कर आये थे, उनसे गुफ्तगू के लिए,
पर जिस दिन ना नहाया हो, वो कमबख्त उसी दिन ही आती है

दिल तो चाहता है, दिलबर हमारा भी हो,
पर उनकी फिक्र करना, हमारी बेफिक्री को सताती है,

वो दिन भी क्या थे, जब सुनते थे हम गज़लें भरपूर,
अब तो तनिक सी आवाज़ भी, कानों को चुभ जाती है

ऐ मालिक ऐसा भी हो, जो सोचता हूँ मैं कभी,
पर जरूरत पर तो, प्रार्थना भी तुझ तक नही जाती है

दीपक जैन
०६-११-२००७

Tuesday, October 16, 2007

कोई तो बात चले, कोई तो बात चले.....

कोई तो बात चले, कोई तो बात चले;
टिमटिमाते दीप तले, कभी तो ये रात ढले

माना कि हम वो ना रहे, करते थे जो हँस हँस के बातें,
वीरान होती जिन्दगी मे, कभी तो वो फूल खिले

हम खो चुके हैं इतना कुछ, अपना भी पराया लगता है,
ख़ुद
को सँजोए रखने को ही, क्या दो कदम साथ चले?

जिसे देख हँसती थी जिन्दगी, उनसे अब नज़र मिलती नही,
एक पल मुस्कुराने को ही, कोई तो इत्तेफाक की आड़ मिले

राहें बदल गई हैं इतनी कि, हमराही भी थे कभी हम?
पाने को उन राहों पर, कभी तो साथ साथ चलें

जिन पर हक था कभी, उनसे ही इज़ाज़त लेनी हैं,
एक मुलाकात को ही, फिर से मिले, फ़िर से मिले

मैं-मैं नही, तुम-तुम नही, हम एक थे हम एक हैं,
खामोशी की आग मे, बस हम जले बस हम जले

थाम लो हाथ फ़िर से, एक बात की ही बात है,
हिचकिचाहट कैसी है, कोई तो बात चले, कोई तो बात चले

~!दीपक
२०-०९-२००७

Wednesday, August 8, 2007

खुदा भी उसका था

मंजिले भी उसकी थी रास्ता भी उसका था...
एक् मैं अकेला था काफिला भी उसका था...
साथ साथ चलने कि सोच भी उसकी थी......
फिर रास्ता बदलने का फैसला भी उसका था........

आज क्यों अकेला हूँ, दिल सवाल करता है,
लोग
तो उसके थे क्या खुदा भी उसका था....