Saturday, February 28, 2009

जिंदगी तुझसे आज़ादी, लाजिमी सी है...

तेरे शिकवों में कुछ, कमी सी है,
सूखी बर्फ चश्मों में, जमी सी है॥

किस मायने बताऊ, जो सच लगे,
हिम्मत की तुझमे, कमी सी है॥

देख ही पाती तू, तो देख ना लेती,
क्यूँ एक लम्हे में, थमी सी है॥

अरसे हुए घर में, शमा जले हुए,
शमा लिए आज भी, नमी सी है॥

तेरे अश्क लगते है, समंदर मुझे,
मुहब्बत फैली हुई, सरजमीं सी है॥

क़ैद हूँ आज भी, जुल्फों में तेरी,
जिंदगी तुझसे आज़ादी, लाजिमी सी है॥

~!दीपक
१-मार्च-२००९

Monday, February 23, 2009

शायरी २००८

वो मुझे झील में अपना प्रतिविम्ब दिखा रहे थे....
एक सूखी टहनी अकस्मात गिरकर, चेहरा दिखा गयी...
---------
हवा में ही चिरैयों के पर ना गिना करो...
आजकल दानापानी ठीक ठाक नहीं मिलता...

..उन लोगो के लिए जो लिफाफा देखकर ही ख़त पढ़ लेते है...
-------------
क़यामत की रात में कायनात मिट गई॥
हम मिट गए, हमारी ख़ाक मिट गई...
तेरा नाम न मिटा...क़यामत की रात मिट गई...
-------------------
मोहब्बत सिर्फ़ परवाने की ही है ...
शमा तो कभी, बुझती नही है...
--------------
जो कुछ भी ना कह पाया हो, उसको खामोशी नही कहते
एक बात छोड़, सब कह पाया हो, खामोशी उसको कहते है...
------------
तबियत से जला साहिबा, क्यूँ धुंआ करती है...
दो जून खिला के देख, ये आग..ठंडा करती है....

~!दीपक
शायरी २००८

Sunday, February 22, 2009

क्या सोचकर दोस्ती का हाथ आगे बढाते हो....

क्या सोचकर दोस्ती का हाथ आगे बढाते हो,
मुझे तो अपना नाम भी, बताना नही आता॥

कोई तो आ जाए जब तुम बात करते हो,
मुझे बात करने का बहाना नही आता॥

तुम शिकवे भी मुहब्बत से कर लेते हो,
मुझे तो प्यार भी जताना नही आता॥

कोना बता दे दिल का जो बदरंग देखते हो,
मुझे बेवजह पानी बहाना नही आता॥

जिस से दिल मिलते नही क्यूँ हाथ मिलाते हो,
मुझे बेवजह दोस्ती निभाना नही आता॥

क्या करू जो आंखों को अश्कवार करते हो,
मुझे दोस्तों पर नश्तर, चलाना नही आता॥

फ़िर क्या सोचकर दोस्ती का हाथ आगे बढाते हो,
मुझे झूठे हसीं ख्वाब दिखाना नही आता॥


~!दीपक
२१-फरवरी-२००९

अपनी बाहों में...उन्हें, आंसू बहाते देखा है...

हुस्न-ओ-गरूर से झिलमिलाते देखा है,
गलियों में उसे, शाम गुजारते देखा है॥

सावन में बावरों की मल्हार से,
बादलों में, चाँद शर्माते देखा है॥

ना कहो जाँ बाकी नही इस ठूंठ में,
चिरैयों को,घरौंदा बनाते देखा है॥

मिजाज़ ना बदलेंगे मेरे जनाब के,
पानी को बर्फ, यूँ पिघलाते देखा है॥

चाल बदल जाती है मेरे दीदार से,
उन्हें इस तरह, कदम मिलाते देखा है॥

ना कहो बेरुखी ही छाई रही नूर पे,
उन्हें मेरी नज्मे गुनगुनाते देखा है॥

फिक्रमंद हुए वो कुछ इस तरह मेरे,
दिल की तड़प आंखों से बहाते देखा है॥

जो आज बदली राह इस चौराहे से,
उनको अपने पीछे आते देखा है॥

क्यूँ छोड़ आए?? इस अज़ीज़ शिकवे से,
अपनी बाहों में...उन्हें, आंसू बहाते देखा है॥

~!दीपक
२१-फरवरी-२००९

Saturday, February 21, 2009

मैंने तुझे चाहा बताना चाहता हूँ

मैंने तुझे चाहा, बताना चाहता हूँ,
पर इक बेरुखी सी अंदाज़ में, लाना चाहता हूँ॥

बहुत प्यार की आदत, बुरी होती है,
कुछ कड़वे घूँट भी, पिलाना चाहता हूँ॥

पहल तो अच्छी है, साथ दोगे पर,
इसी विश्वास में कुछ रातें,बिताना चाहता हूँ॥

जानता हूँ मेरे रुख, मौसम से बदलते हैं,
इसीलिए तो झलकियाँ, दिखलाना चाहता हूँ॥

तुम मासूम ही बहुत, अच्छी लगती हो,
कुछ नादानियों पर, खिलखिलाना चाहता हूँ॥

गिले शिकवों को सदा, दूर रखना प्यार से,
हर लम्हे में साथ, मुस्कुराना चाहता हूँ॥

ना कहो कि तेरे लिए, कुछ सोचता नही,
आज हाथों से तुझे, खिलाना चाहता हूँ॥

देख सोचते हुए, तुझे ग़ज़ल से सजा डाला,
अब मेंहदी तेरे हाथों में, लगाना चाहता हूँ॥

~!दीपक
२०-फरवरी-२००९

जुर्रत देखो कैसी इनकी, मुझसे मुहब्बत करते हैं...

मेरे घर में आग लगाकर, पानी डाला करते है...
खुदा खैर करे, इन दिवानों से, मुझे मार मरते है॥

प्यार दिखाने का इनका, अंदाज़ गजब निराला है,
दो पल को मिलते है, और रुलाकर हँसते है॥

दिल में दर्द है कितना, आंखों में कितने आँसू है,
दिल को मेरे छलनी करके, दर्द-ए-दवा करते है॥

हमसफ़र है ऐसे भी, अंधेरों में पहचान न थी,
मैं सूनी राहों पर चला, ये महफिलों में मिलते है॥

सफ़ेद गुलाब काटों वाला, दे नुमाइश कर गए,
रक्त-ए-लाल गुलाब की, हसरतें पाला करते है॥

तूफां में दीपक जब, अंधेरों से लड़ता है,
पुर्वाई घर लाने, खिड़कियाँ खोला करते है॥

दिवाने है मेरे ये, दीवानों से लगते हैं,
जुर्रत देखो कैसी इनकी, और...मुझसे मुहब्बत करते हैं॥

~!दीपक
२०-फरवरी-२००९

कुछ नया लिखने को, क्यों तेरी रूह मचलती नही..

ये कलम खामोश है, आजकल उठती नही...
घिसट घिसट कर, कहती है..., मैं चलती नही॥

कुछ पुरानी बातों को ही, सजा सजा कर लिखते नही...
कुछ नया लिखने को, क्यों तेरी रूह मचलती नही?

संगदिल तो कहते हो, संगदिली से मिलते नही...
जानते हो, टकराए बिना...चिंगारी फूटती नही॥

चांद तारे परियों की, कहानी नई लगती नही...
आदमी और आदमियत की, क्यों बात जुबां करती नही?

खुदाई, मुहब्बत और वफ़ा, जिंदगी से मिलती नही...
सनम को तोहमत देने से, दिल जली मिटती नही॥

आईने को सूरत दिखे, सीरत कभी दिखती नही...
पत्तियों को पानी देने से, गुलनार कभी खिलती नही॥

जब तक ठूंठ ना हुआ हो, कोपलें नई खिलती नही...
हरित पल्लव!!! कूटनीति पर, बहारें चलती नही॥

कैसे दे इंसां को, खुदा कायनात अपनी...
इंसां को इंसानियत ही, जब समझती नही॥

~!दीपक
२० फरवरी २००९