मैंने तुझे चाहा, बताना चाहता हूँ,
पर इक बेरुखी सी अंदाज़ में, लाना चाहता हूँ॥
बहुत प्यार की आदत, बुरी होती है,
कुछ कड़वे घूँट भी, पिलाना चाहता हूँ॥
पहल तो अच्छी है, साथ दोगे पर,
इसी विश्वास में कुछ रातें,बिताना चाहता हूँ॥
जानता हूँ मेरे रुख, मौसम से बदलते हैं,
इसीलिए तो झलकियाँ, दिखलाना चाहता हूँ॥
तुम मासूम ही बहुत, अच्छी लगती हो,
कुछ नादानियों पर, खिलखिलाना चाहता हूँ॥
गिले शिकवों को सदा, दूर रखना प्यार से,
हर लम्हे में साथ, मुस्कुराना चाहता हूँ॥
ना कहो कि तेरे लिए, कुछ सोचता नही,
आज हाथों से तुझे, खिलाना चाहता हूँ॥
देख सोचते हुए, तुझे ग़ज़ल से सजा डाला,
अब मेंहदी तेरे हाथों में, लगाना चाहता हूँ॥
~!दीपक
२०-फरवरी-२००९
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