Sunday, February 22, 2009

अपनी बाहों में...उन्हें, आंसू बहाते देखा है...

हुस्न-ओ-गरूर से झिलमिलाते देखा है,
गलियों में उसे, शाम गुजारते देखा है॥

सावन में बावरों की मल्हार से,
बादलों में, चाँद शर्माते देखा है॥

ना कहो जाँ बाकी नही इस ठूंठ में,
चिरैयों को,घरौंदा बनाते देखा है॥

मिजाज़ ना बदलेंगे मेरे जनाब के,
पानी को बर्फ, यूँ पिघलाते देखा है॥

चाल बदल जाती है मेरे दीदार से,
उन्हें इस तरह, कदम मिलाते देखा है॥

ना कहो बेरुखी ही छाई रही नूर पे,
उन्हें मेरी नज्मे गुनगुनाते देखा है॥

फिक्रमंद हुए वो कुछ इस तरह मेरे,
दिल की तड़प आंखों से बहाते देखा है॥

जो आज बदली राह इस चौराहे से,
उनको अपने पीछे आते देखा है॥

क्यूँ छोड़ आए?? इस अज़ीज़ शिकवे से,
अपनी बाहों में...उन्हें, आंसू बहाते देखा है॥

~!दीपक
२१-फरवरी-२००९

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