ये कलम खामोश है, आजकल उठती नही...
घिसट घिसट कर, कहती है..., मैं चलती नही॥
कुछ पुरानी बातों को ही, सजा सजा कर लिखते नही...
कुछ नया लिखने को, क्यों तेरी रूह मचलती नही?
संगदिल तो कहते हो, संगदिली से मिलते नही...
जानते हो, टकराए बिना...चिंगारी फूटती नही॥
चांद तारे परियों की, कहानी नई लगती नही...
आदमी और आदमियत की, क्यों बात जुबां करती नही?
खुदाई, मुहब्बत और वफ़ा, जिंदगी से मिलती नही...
सनम को तोहमत देने से, दिल जली मिटती नही॥
आईने को सूरत दिखे, सीरत कभी दिखती नही...
पत्तियों को पानी देने से, गुलनार कभी खिलती नही॥
जब तक ठूंठ ना हुआ हो, कोपलें नई खिलती नही...
हरित पल्लव!!! कूटनीति पर, बहारें चलती नही॥
कैसे दे इंसां को, खुदा कायनात अपनी...
इंसां को इंसानियत ही, जब समझती नही॥
~!दीपक
२० फरवरी २००९
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