Saturday, February 21, 2009

जुर्रत देखो कैसी इनकी, मुझसे मुहब्बत करते हैं...

मेरे घर में आग लगाकर, पानी डाला करते है...
खुदा खैर करे, इन दिवानों से, मुझे मार मरते है॥

प्यार दिखाने का इनका, अंदाज़ गजब निराला है,
दो पल को मिलते है, और रुलाकर हँसते है॥

दिल में दर्द है कितना, आंखों में कितने आँसू है,
दिल को मेरे छलनी करके, दर्द-ए-दवा करते है॥

हमसफ़र है ऐसे भी, अंधेरों में पहचान न थी,
मैं सूनी राहों पर चला, ये महफिलों में मिलते है॥

सफ़ेद गुलाब काटों वाला, दे नुमाइश कर गए,
रक्त-ए-लाल गुलाब की, हसरतें पाला करते है॥

तूफां में दीपक जब, अंधेरों से लड़ता है,
पुर्वाई घर लाने, खिड़कियाँ खोला करते है॥

दिवाने है मेरे ये, दीवानों से लगते हैं,
जुर्रत देखो कैसी इनकी, और...मुझसे मुहब्बत करते हैं॥

~!दीपक
२०-फरवरी-२००९

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