यूँ तो महफिल में बातें तमाम हुई...
उनका यूँ चला जाना, गुफ्तगू-ए-आम हुई..
कटघरे में हम है, सवालों के बीच..
मजलिस ना हुई, कचहरी बदनाम हुई..
सज़ा मुक्करर होगी ना जाने ये कब..
सारी रात ये, जागती शाम हुई..
यूँ तो सपने नींद में ना आये..
जागी आँखों को, तस्वीरे हराम हुई..
अब तेरा फैसला जिन्दा ना रखेगा..
दोस्ती हमारी दीवानगी के नाम हुई..
ये इश्क बड़ा काफिर है दोस्तों,
खुदाई तेरी हस्ती, यूँ बदनाम हुई...
~!दीपक
०५-अप्रैल-२००९
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