हम उन गलियों से नही गुज़रते,
जहाँ दोस्ती की कोई बात नही होती॥
बन गए हमसफ़र तो क्या हुआ,
मुहब्बत ही आख़िर जज़्बात नही होती॥
गुफ्तगू करते है, और करते रहेंगे,
क्या दोस्तों की कोई शब्-ऐ-रात नही होती??
यूँ इल्जामों से हमे सताते क्यूँ हो,
दोस्तों की कोई जात नही होती॥
और कई बातें,..बात नही होती
...या, सिर्फ़ बात नही होती॥
~!दीपक
८-अप्रैल-२००९
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